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________________ १६७ ४ विजयप्रशस्तिकाव्य ? और इस पर गुणविजय द्वारा वि०सं० १६८९ में रची गयी टीका, जिसका पूर्व में हीरविजयसूरि के सम्बन्ध में उल्लेख आ चुका है, तथा इसके अतिरिक्त गुणविजय द्वारा ही रचित विजयसेनसूरिनिर्वाणरास एवं कवि वीपा के शिष्य विद्याचन्द्र द्वारा रचित विजयसेनसूरिनिर्वाणरास" नामक कृतियों से जानकारी प्राप्त होती है। उक्त साक्ष्यों के अनुसार वि० सं० १६०४ में इनका जन्म हुआ था। वि० सं० १६१३ में ९ वर्ष की आयु में विजयदानसूर के पास इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० १६२८ में इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ। हीरविजयसूरि के गुजरात लौट जाने के पश्चात् पीछे से बादशाह ने उनके पट्टधर विजयसेनसूरि को वि० सं० १६४९ में अपने दरबार में, जब वह लाहौर में था, बुलवाया ओर इनका यथेष्ठ सम्मान कर सवाईहीर की पदवी से अलंकृत किया। ६ वि० सं० १६७२ में इनका देहान्त हुआ। کار विजयसेनसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुईं हैं, जो वि० सं० १६४२ से वि०सं०१६७० तक की हैं। इनका विवरण निम्नानुसार है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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