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मुनिसुन्दरसूरि-तपागच्छीय आचार्य सोमसुन्दरसूरि के प्रतिभासम्पन्न पट्टधर और शिष्य मुनिसुन्दरसूरि के प्रारम्भिक जीवन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है पट्टावलियों के अनुसार वि०सं० १४२६ या १४३६ में इनका जन्म हुआ, वि०सं० १४४३ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १४६६ में वाचक पद प्राप्त किया। वि० सं० १४७८ में वड़नगर में इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ और वि०सं० १५०३ में इनका निधन हुआ। ४४ इनके द्वारा रचित कृतियाँ" इस प्रकार हैं।
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१. त्रैविद्यगोष्ठी (वि० सं० १४५५ / ई०स० १३९८-९९)
२. अध्यात्मकल्पद्रुम अपरनाम शांतसुधारस (वि०सं०१४५५ / ई०स० १३९८-९९) ३. त्रिदशतरंगिणी (वि० सं० १४६६ / ई०स० १४१०) यह महाविज्ञप्तिपत्र मुनिसुन्दरसूरि देवसुन्दरसूरि के पास भेजा था। १०८ हाथ लम्बे इस विज्ञप्तिपत्र का केवल वालाअंश ही आज प्राप्त हो सका है।
ने गुर्वावली ४. चतुर्विंशतिस्तोत्ररत्नकोश
१४२७)
५. जयानन्दचरित (वि०सं० १४८३ / ई०स० ६. मित्रचतुष्ककथा ( वि० सं० १४८४ / ई०स० १४२८)
७. उपदेशरत्नाकर स्वोपज्ञवृत्ति के साथ (वि०सं० १४९३ / ई०स० १४३७)
८. संतिकरथोत्त (शंतिकरस्तोत्र) (वि०सं० १४९३ अथवा १५०३)
९. सीमंधरस्तुति
१०. पाक्षिकसत्तरी
११. योगशास्त्र के चतुर्थ प्रकाश पर बालावबोध
इसके अलवा इनके द्वारा रचित कुछ स्तवन भी मिलते हैं जो इस प्रकार हैं: १. चतुर्विंशतिजिनकल्याणकस्तवन
२. जीरापल्लीपार्श्वनाथस्तवन (रचनाकाल वि०सं० १४७३ / ई०स०१४१७)
३. शत्रुंजयश्री आदिनाथस्तोत्र ( वि०सं० १४७६ / ई० स० १४२० )
४. गिरनारमौलिमण्डन श्रीनेमिनाथस्तवनम् (वि०सं० १४७६ / ई०स० १४२०)
५. शत्रुंजय आदिनाथस्तवन (वि०सं० १४७६ / ई० स० १४२०)
६. वृद्धनगरस्थ आदिनाथस्तवनम्
७. सारणदुर्ग अजितनाथस्तोत्रम्
८. इलादुर्गालंकार श्रीऋषभदेवस्तवनम्
९. सीमंधरस्वामिस्तवनम् (वि० सं० १४८२ / ई०स० १४२६ ) १०. वर्धमानजिनस्तवनम्
११. श्रीजिनपतिद्वात्रिंशिका (वि०सं० १४८३ / ई०स० १४२७)
शांतिनाथ जिनालय, जावर (उदयपुर) के वि० सं० १४७८ पौष सुदि ५ के प्रशस्तिलेख ४७ में सोमसुन्दरसूरि, जयचन्द्र, भुवनसुन्दर, जिनसुन्दर, जिनकीर्ति, विशालराज, रत्नशेखर, उदयनंदि, लक्ष्मीसागर, सत्यशेखरगणि, सुरसुन्दरगणि आदि मुनिजनों के साथ मुनिसुन्दरसूरि का भी नाम मिलता है। ठीक यही बात जीरावला स्थित विभिन्न जिनालयों के देवकुलिकाओं पर
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