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३.
संदर्भ जिनरत्नकोश, पृ० ३९७. वही, पृ० ३७३. जैनगूर्जरकविओ, द्वितीयसंशोधितसंस्करण, भाग २, पृ० ६९-७१ और आगे Vidhatri Vora, Ibid. P-739-42. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११११. विवेकधीरगणि, शत्रुजयोद्धारप्रबन्ध, प्रस्तावना. मूलग्रन्थ उपलब्ध न होने से यह संदर्भ श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई कृत जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ७०-७१ के आधार पर दिया गया है।
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