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जीवादे सुत गुढसीआ भार्या भाखणादे मू......भार्या जूढिआ समस्तकुटुम्बयुतेन श्रीकोटनगरमध्ये श्रीसंभवनाथचैत्यालये देवकुलिकाकारी(रि)ता मध्ये श्रीसुविधिनाथबिंब स्वस्य श्रेयसेः श्रीवृद्धतपागच्छे भट्टारिक श्रीधनरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्रीतेजरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्री ५ श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः प्रतिष्ठित शुभंभवतु।। पं० विनयचारित्र पं० विमलरत्न पं० जयसिंह पं० ज्ञानरत्न पं० वीरत्न शि०
आणंदरत्नेनलिखित।। वही, लेखांक १०३२. 38-34. A.P.Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss : Asuni Shrec Punya
Vijyajis Collection, Part I, No.645, P-51. जैनगूर्जरकविओ, द्वितीयसंशोधित संस्करण, भाग ३, पृष्ठ १०-१७, ३७३-७४. Vora. Catalogue of Gujrati Mss : Muni Shree Punya Vijayjis Collection, P-1. जैनगूर्जरकविओ, द्वितीयसंशोधित संस्करण, भाग ४, पृष्ठ १६९. मुनि जिनविजय, संग्रा०संपा०-जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजी जैन ऐतिहासिक ग्रन्थमाला:पुष्प ७, भावनगर १९२६ ई०स० पृष्ठ १-१३. रास सार, पृष्ठ१-५. वही, पृष्ठ १३. जैनगूर्जरकविओ, द्वितीय संशोधित संस्करण, भाग ४, पृष्ठ १६३-६४. वही, भाग १, पृष्ठ ३७९-८०.
वही, भाग २, पृष्ठ ९३-१११ ४४. वही, भाग २, पृष्ठ २३०.
वही, भाग १, पृष्ठ ३४५-४६. ४६. वही, भाग २, पृष्ठ ५३.
मुनि कांतिसागर, पूर्वोक्त, पृष्ठ १३३-३४
४०.
४३.
४५.
४७.
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