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संदर्भ
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"बृहद्पौशालिकपट्टावली” मुनि जिनविजय, संपा०- विविधगच्छीय पट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, मुम्बई १९६१ ई० पृष्ठ २४. "बृहद्पौशालिकपट्टावली", वही, पृष्ठ १३-३६. मुनि कल्याणविजय, संपा०-पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ १७४-१८१. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ भाग ९, द्वितीयसंशोधित संस्करण, संपा०-डा० जयन्तकोठारी, मुम्बई १९९७ ई०, पृष्ठ ७४-८५. तत्पादाम्बुजरोलम्बावपुष्यति ................ । अभूवन् भूरिभाग्याढया: श्रीजगच्चद्रसूरयष्ट्व ।।८।। देवेन्द्रसूरिसंज्ञस्तेषामाद्यो बभूव शिष्यलवः । श्रीविजयचन्द्रसूरिस्तया द्वितीयो गुणस्त्वाद्यः ॥९॥ चक्रे भव्यावबोधाय संप्रदायात्तथागमात् सच्छ्राद्धदिनकृत्यस्य वृत्तिर्देवन्द्रसूरिभिः ॥१०॥ श्रीविजयचन्द्रसूरिप्रमुखैर्विद्वद्गणैर्गुणगारिष्ठैः । स्वपरोपकारानिरतैस्तदैव संशोधिता चेयम् ॥११।। -------------------------------- ........................ ---------------------------------- देवेन्द्रसूरिकृत श्राद्धदिनकृत्य की प्रशस्ति उद्धृत-मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ २३-२४. C. D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Palm Leaf Mss in the Jaina Bhandars at Pattan, G.O.S., No. 76, Baroda 1937 A.D., Pp-354-56. द्रष्टव्य संदर्भ क्रमांक २. स्वान्ययोरुपकाराय श्रीमद्देवेन्द्रसूरिणा । धर्मरत्नास्य टीकेयं सुखबोधा विनिर्ममे ॥८॥ श्रीहेमकलशवाचकपण्डितवर धर्मकीर्तिमुख्यबुधैः । स्वयरसमयैककुशलैस्तदैव संशोधिता चेयम् ॥९॥ देवेन्द्रसूरिकृत धर्मरत्नप्रकरणवृत्ति की प्रशस्ति उद्धृत - मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ ३. जीवनचंद साकरचंद झवेरी, संग्राहक और संशोधक-आनन्दकाव्यमहोदधि, भाग ६, श्री देवचंद लालभाई पुस्तकोद्धारे, ग्रन्थांक ४३, मुम्बई १९१८ ई०स०, प्रस्तावना लेखक-श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई, पृष्ठ १०. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैनसंस्कृतसाहित्यनोइतिहास, भाग २, खंड १, श्री मुक्तिकमल जैनमोहनमाला, ग्रन्थांक ६४, बड़ोदरा १९६८ ई०स०, पृष्ठ ३५६-५७.
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