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२३१ वि० सं० १५०१ में भवभावनासूत्रबालावबोध एवं नेमीश्वरचरित्र के कर्ता माणिक्यसुन्दरगणि" रत्नसिंहसूरि के शिष्य थे।
वि०सं०१५१४ में लिखी गयी उत्तराध्ययनसूत्रअवचूरि की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार उदयमंडन' ने स्वयं को रत्नसिंहसूरि का शिष्य कहा है।
वि०सं० १५०७ में वाक्यप्रकाशऔक्तिक के रचनाकार उदयधर्म भी रत्नसिंहसूरि१७ के ही शिष्य थे।
वि० सं० १५०९ में रत्नचूड़ामणिरास एवं वि० सं० १५१६ में जम्बूरास के कर्ता ने अपना नाम उल्लिखित न करते हुए स्वयं को मात्र रत्नसिंहसूरिशिष्य कहा है।
रत्नसिंहसूरि शिष्य द्वारा रचित गिरनारतीर्थमाल नामक एक कृति प्राप्त होती है। इसमें स्तम्भतीर्थ के श्रेष्ठी शाणराज द्वारा गिरनार पर इन्द्रनीलतिलकप्रासाद१९ नामक जिनालय बनवाने की बात भी कही गयी है।
शाणराज द्वारा यहां विमलनाथ के परिकर का निर्माण कराने का उल्लेख वि० सं० १५२३ के एक शिलालेख में प्राप्त होता है।
आचार्य विजयधर्मसूरि ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है:
" संवत् १५२३ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरौ श्री वृद्धतपापक्षेगच्छनायक भट्टाकर श्री रत्नसिंहसूरिणां तथा भट्टाकर उदयवल्लभसूरिणां (च) उपदेशेन। व्य० श्रीराणा सं० भूभवप्रमुखश्रीसंघेन श्री विमलनाथपरिकर: कारित:प्रतिष्ठाता गच्छाधीशपूज्यश्रीज्ञानसागरसूरिभिः।"
यह शिलालेख आज उपलब्ध नहीं होता।
शाणराज की गिरनार प्रशस्ति२१ की प्रारंभिक पंक्तियां ही वहां से प्राप्त हुई हैं शेष अंश नहीं मिलता किन्तु सद्भाग्य से इसका अधिकांश भाग बृहद्पौशालिकपट्टावली में प्राप्त हो जाता है।
महीवालकथा, कुमारपालचरित, शीलदूतकाव्य, आचारोपदेश आदि के रचनाकार एवं वि०सं० १५२३ तक विभिन्न जिनप्रतिमाओं के प्रतिष्ठापक चारित्रसुन्दरगणि२२ तथा वि०सं० १४९७ में संग्रहणीबालावबोध और वि०सं० १५२९ में क्षेत्रसमासबालावबोध के कर्ता दयासिंहगणि२३ भी इन्हीं रत्नसिंहसूरि के शिष्य थे।
वि०सं० १५१६ में लिखी गयी उत्तराध्ययनसूत्र की एक प्रति से ज्ञात होता है कि इसे रत्नसिंहसूरि की शिष्या धर्मलक्ष्मी महत्तरा२४ के पठनार्थ लिखा गया था।
रत्नसिंहसूरि के शिष्य एवं पट्टधर उदयवल्लभसूरि२५ हुए जिनके द्वारा वि०सं० १५२० के लगभग रचित क्षेत्रसमासबालावबोध नामक कृति प्राप्त होती है। वि०सं० १५१८-२१ तक के कुछ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है जिनका विवरण इस प्रकार है : १. १५१८ ज्येष्ठ सुदि शीतलनाथ की धातु की वर्धमान शाह का प्राचीनलेखसंग्रह,
___३ शनिवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देरासर, जामनगर लेखांक ३२३ २. १५१५ जयेल वाद वासुपूज्य स्वामी की सेठ नरसीनाथा का जैनलेखसंग्रह,
२ शनिवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मन्दिर, पालीताणा भाग १, लेखांक ६६१
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