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आचार्य विजयाणंदसूरि
आचार्य विजयराजसूरि
(वि०सं० १६४२ में जन्म; वि०सं० १६५१ में दीक्षा; वि०सं० १६७६ में आचार्य पद; वि०सं० १७११ में निधन) (वि० सं० १६७९ में जन्म; वि० सं० १६८९ में दीक्षा; वि० सं० १७०४ में आचार्यपद; वि० सं० १७४२ में स्वर्गस्थ) (वि० सं० १७०७ में जन्म; वि०सं० १७१९ में दीक्षा; वि० सं० १७३१ में उपाध्यायपद; वि०सं० १७३६ में आचार्य पद; वि०सं० १७७० में
आचार्य विजयमानसूरि
स्वर्गस्थ)
आचार्य विजयऋद्धिसूरि दीक्षा;
(वि० सं० १७२७ में जन्म; सं० १७४२ में
विसं० १७६६ में आचार्य पद; वि०सं० १७९७ में निधन)
विजयसौभाग्यसूरि
विजयप्रतापसूरि
विजयलक्ष्मीसूरि (वि० सं० १७९७ में विजयतिलकसूरि (वि० सं० १८३७ में स्वर्गस्थ)
जन्म; वि०सं०१८१४
में दीक्षा; वि०सं० १८५८ में स्वर्गस्थ) विजयदेवेन्द्रसूरि (वि० सं० १८५७ में आचार्यपद;
वि०सं० १८६१ में स्वर्गवास) विजयमहेन्द्रसूरि (वि० सं० १८२७ में दीक्षा; वि०सं० १८६१ में आचार्यपद;
। वि० सं० १८६५ में स्वर्गस्थ) विजयसमुद्रसूरि (वि०सं० १८६५ में आचार्य पद)
इन्हीं के समय वि०सं० १८७७ में दीपविजय ने सोहमकुलपट्टावली
सज्झाय की रचना की थी। विजयधनेश्वरसूरि (वि०सं० १८९३) प्रतिमालेख
विजयविद्यानन्दसूरि (वि०सं० १९११) लेख
वीरवंशावली तथा सोहमकुलपट्टावलीसज्झाय में इस शाखा के पट्टधर आचार्यों की विभिन्न तिथियों में प्राय: मतभेद है किन्तु उनके पट्टक्रम के बारे में दोनों ही साक्ष्यों में कोई भी अन्तर नहीं है।
विजयतिलकसूरि-जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं वि०सं० १६५१ में इनका जन्म हुआ था; वि०सं० १६६२ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और रामविजय नाम प्राप्त किया।
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