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भूमिका
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छंदों के नामान्तर देते हुये 'इति भरतः' कह कर जो नामभेद दिये हैं उनमें से निम्नलिखित छंद वर्तमान में प्राप्त भरत के नाट्यशास्त्र में उपलब्ध नहीं हैं, और यति-विरोधी प्राचार्यों में गणना होने से संभव है कि नाट्यशास्त्र में निरूपित छंदों के अतिरिक्त भरत ने छंदःशास्त्र पर कोई स्वतन्त्र ग्रंथ भी लिखा हो। भरत के नाम से उल्लिखित अनुपलब्ध छंदों की तालिका निम्न है :३ अक्षर
६ अक्षर गिरा तडित्
शिखा ललिता
भोगवती. जया
- द्रुतगतिः भ्रमरी
पुष्पसमृद्धिः वागुरा
रुचिरा कुन्तलतन्वी
अपरवक्त्रम् शिखा
द्रुतपदगतिः कमलमुखी
रुचिरमुखी नलिनी
मनोवती वीथी १३. कविदर्पण-यह अज्ञात जैन-कर्तृक कृति है। छंदों के उदाहरणों में जिनसिंहसूरि-रचित चूडाल-दोहक' का उदाहरण है। जिनसिंहसूरि खरतरगच्छीय द्वितीय जिनेश्वरसूरि के शिष्य हैं, इनका शासनकाल १३००-१३४१ तक का है। कविदर्पण का सर्वप्रथम उल्लेख सं० १३६५ में रचित अजितशांतिस्तव की टीका में जिनप्रभसूरि ने किया है जो कि जिनसिंहसूरि के शिष्य हैं । अतः यह अनुमान किया जा सकता है कि इसके प्रणेता जिनसिंहसूरि के शिष्य और जिनप्रभसूरि के गुरुभ्राता ही होंगे।
यह ग्रंथ प्राकृतभाषा में ६ उद्देश्यों में विभक्त है। छन्दों के वर्गीकरण तथा लक्षण निर्देश से इसकी मौलिकता प्रकट होती है। प्राकृत-अपभ्रश की परम्परा में इसका यथेष्ट महत्त्व है।
१४. छन्दःकोष-इसके प्रणेता रत्नशेखरसूरि हेमतिलकसूरि के शिष्य हैं। इनका समय १५वीं शती है। यह ग्रंथ प्राकृतभाषा में है। इसमें कुल ७४ पद्य हैं। इस ग्रंथ के छंदों का विवेचन छंदो व्यवहार के अधिक निकट है और तयुगीन छंदों के स्वरूप-विकास के अध्ययन की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण है। १-कविदर्पण, पृ. २४