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तोड देनेके लिए कही-कहीं मालिनी और द्रुतविलम्बित छन्दका उपयोग किया गया है । उन्यका उपसहार शिखरिणीने किया गया है। विषय-क्रमने सर्गोका विभाजन मोटे रूपते इन प्रकार है - वर्णन और प्रकृति-चित्र--प्राय सब सोमे, किन्तु विशेष कर
पहला, तीसरा, सातवां, आठवां, दनवां, और ग्यारहवाँ नर्ग । कथा-भाग
चौया, आठवां, नांवां, बारहवां, चौदह्वा, पन्ह्वा , नोलहवां और नत्रहवां सर्ग। प्रेम शृगार और मनोरजनात्मक
दूसरा, पांचवां और छठा नर्ग। वैगग्य और उपदेगात्मक
दसवां, न्यारवां, तेन्वा और नत्रहवां सर्ग।
महाकाव्योंके अनुरूप 'वर्द्धमान' में वर्णन-नौदर्य पद-लालित्य, अर्थ-गाम्भीर्य, रस-निर्क और काव्य-कौगल सभी कुछ है । पद-पद पर रूपको, उपमाओ और अन्य अलवारोनी छटा दर्शनीय है। इतना प्रम-नाध्य कौगल होने पर भी सगति और प्रवाहकी रक्षाका प्रयत्न है। मारा काव्य भगवान् महावीरके पिता गग निद्धार्थको गज-मनाकी तन्ह नालात् नरवतीका प्रतीक है -
"सुवर्ण-वर्णा, ललिता, मनोहरा मना लती यो पद-न्यास-शालिनी । विरचि-मिद्धार्य यता लखी गई शरीरिणी ज्यों अपरा सरस्वती॥"
(पृष्ठ ४३, द ३३) नावान्को नाता रानी निगला निमें कदिने उपमायोकी मनोहारिणी नडी पिगेई है । निगला कल्य-वन्तरी है -
"सुपुष्पिता दन्त-प्रभा-प्रभावमे नृपालिका पन्लविता सुपाणिसे ।