Book Title: Varddhaman
Author(s): Anup Mahakavi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ - ४ - तोड देनेके लिए कही-कहीं मालिनी और द्रुतविलम्बित छन्दका उपयोग किया गया है । उन्यका उपसहार शिखरिणीने किया गया है। विषय-क्रमने सर्गोका विभाजन मोटे रूपते इन प्रकार है - वर्णन और प्रकृति-चित्र--प्राय सब सोमे, किन्तु विशेष कर पहला, तीसरा, सातवां, आठवां, दनवां, और ग्यारहवाँ नर्ग । कथा-भाग चौया, आठवां, नांवां, बारहवां, चौदह्वा, पन्ह्वा , नोलहवां और नत्रहवां सर्ग। प्रेम शृगार और मनोरजनात्मक दूसरा, पांचवां और छठा नर्ग। वैगग्य और उपदेगात्मक दसवां, न्यारवां, तेन्वा और नत्रहवां सर्ग। महाकाव्योंके अनुरूप 'वर्द्धमान' में वर्णन-नौदर्य पद-लालित्य, अर्थ-गाम्भीर्य, रस-निर्क और काव्य-कौगल सभी कुछ है । पद-पद पर रूपको, उपमाओ और अन्य अलवारोनी छटा दर्शनीय है। इतना प्रम-नाध्य कौगल होने पर भी सगति और प्रवाहकी रक्षाका प्रयत्न है। मारा काव्य भगवान् महावीरके पिता गग निद्धार्थको गज-मनाकी तन्ह नालात् नरवतीका प्रतीक है - "सुवर्ण-वर्णा, ललिता, मनोहरा मना लती यो पद-न्यास-शालिनी । विरचि-मिद्धार्य यता लखी गई शरीरिणी ज्यों अपरा सरस्वती॥" (पृष्ठ ४३, द ३३) नावान्को नाता रानी निगला निमें कदिने उपमायोकी मनोहारिणी नडी पिगेई है । निगला कल्य-वन्तरी है - "सुपुष्पिता दन्त-प्रभा-प्रभावमे नृपालिका पन्लविता सुपाणिसे ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 141