Book Title: Varddhaman
Author(s): Anup Mahakavi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 10
________________ फलक वनाकर कल्पनाकी तूलिका बलाई है। यहां इतिहास तो केवल डोरकी तरह है जो कल्पनाकी पतगको भावनाप्रोके आकागमें तली छूट देनेके लिए प्रयुक्त है। उडानका कौगल देवनेने लिए दर्शककी दृष्टि पतग पर रहती है, डोर पर नहीं । हां, पतगके बिलाडीको उननी टोर अवश्य नभालनी पड़ती है जितनी उडानके लिए आवश्यक है। महाकाव्यके कविके लिए जो एक बन्धन अावश्यक है, वह है माहित्यिपपरम्परा और पद्धतिका। दण्डीने अपने गन्य काव्यादर्शमें महाकाव्य निम्नलिखित लक्षण बतलाये हैं - "महाकाव्यको कथावस्तु किसी प्राचीन इतिहास अयवा ऐतिहासिक वृत्तके प्राधारपर हो । नायक धीरोदात्त प्रकृतिका हो। महाकाव्यमें नगर, समुद्र, पर्वत, ऋतु, सूर्योदय, चन्द्रोदय, जलक्रीडा, विवाह, यात्रा, युद्ध आदिका वर्णन होना चाहिए। अति सक्षिप्त नहीं होना चाहिए। इसमें वीररस अथवा शृगाररस प्रवान हो और दूसरे रस भी गौणल्पम हों। सम्पूर्ण काव्य सर्गोमें विभक्त होना चाहिए। प्रतिसर्गमें एक ही वृत्तके छन्द हो, किन्तु सर्गके अन्तमें अन्य वृत्तके छन्द अवश्य हों" इत्यादि । (काव्यादर्श-११४१४९) महाकाव्यकी उपर्युक्त पम्पनका आधार सम्कृत नाहित्य है । नस्कृनके लगभग नभी महाकाव्य इसी परिपाटीके आधार पर लिखे गये है अत उनके लिए विषय और आल्यान भी ऐसे ही चुने गये है जिनमें महाकाव्यकी कथा वन्नु के प्रमारकी आँ उपयुक्त नामग्री प्रदान करनेकी क्षमता हो । भगवान गम, आनन्दकन्द कृष्ण और महात्मा बुद्धके जीवन-पान्यानोको कवियोने अनुश्रुति और प्रतिभाके वल पर इस प्रकार विकसित कर लिया कि ईस्वी पूर्व चौथी और पांचवी शताब्दीमे 'रामायण' तथा 'महाभारत' और तीसरी शताब्दी, (ईस्वी उत्त) में अश्वघोप द्वारा 'वुद्ध-चरित' नामक महाकाव्योकी रचना हुई । क्या कारण है कि भगवान् महावीरके जीवनवृत्तके आधारपर मतान्दियो बाद तप भी कोई नागोपांग महाकाव्य न लिखा जा सका? हिन्दी साहित्यमें भी

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