Book Title: Upsargahara Stotra Laghuvrutti
Author(s): Purnachandracharya, Bechardas Doshi
Publisher: Mohanlal Girdharlal Shah Bhavnagar
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जस्स पयकमले सया, वसइ पोमावई धरणिंदो। तस्स नापेण सालं, विसहरविसं नासेह ॥१०॥ तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि-कल्पपायवमहिो । पार्वति अविग्वे गं, जीवा अपरामरं ठाणं ॥११॥ नट्ठमयट्ठाणं, पणटकम्मट्ठनहसंसारं । परमनिटिअटुं, अट्टगुगाधीसरं वंदे ॥१२॥ इअ संथुओ महायस, भत्तिब्भरनिब्भरेण हियएण। ता देव दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास निगचंद ! ॥१३॥ स तुहनाम सुध्धे, मंते जो नर जांति सुद्धभावस्म । सो अपरामरं ठाणं, पावंती न पायमुख ॥ १४ ॥ पनास गोपीडा, क्रुरगह दसण भयंकाये । आपीन हुंतीएतहवी, तसीझं गुगी जासो ॥ १५ ॥ पीडजंत भगदरं, खास सास मूलतह नीवाह । श्रीसामल पास महंत, नाम पउर पउलेग ॥१६॥ रोगजलजलणविसहर, चोरारिमइंदगयरणभयाई। पासजिगनामसंकित्त गेग पसमंति सचाई ॥१७॥ तं नमह पासनाहं, धरणिंदनमंसियं दुह पणासेइ । तस्स पभावेण सया, नासंति सयलदुरियाणं ॥१८॥ एए समरंताणं, मुणिं न दुह वाहि नासमाही दुक्खं । नायं सीयमं असमं, पयडो नयिथ्य संदेहो ॥१९॥ जल जलण तह सप्पसीहो, मारारी संभवेपि खिप्पं जो । समरेइ पास पहु, पहो वि न कथा वि कीसी तस्स ॥ इह लोगडि परलोगठि, जो समरेइ पामनाहं तु । ततो सिज्झेइ न कोसंह, नाह सुरा भगवंतं ॥२१॥
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