Book Title: Upsargahara Stotra Laghuvrutti
Author(s): Purnachandracharya, Bechardas Doshi
Publisher: Mohanlal Girdharlal Shah Bhavnagar
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उपसर्गहर
स्तोत्र
॥ ५॥
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परिशिष्टम् —
अनेकमन्त्रगर्भित–परमप्रभावक - श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम् " उवसग्गहरं'
"
उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुकं । विसहरविसनिन्नासं, मंगलकल्लाण आवासं ॥ १ ॥ विसहरफुलिंगमंत, कंठे धारेइ जो सया मणुओ । तस्स गह रोग - मारी - दुट्ठजरा जंति उवसामं ॥ २ ॥ चिट्ठ दूरे तो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ । नर - तिरिएस वि जीवा, पावंति न दुक्खदोगच्चं ॥ ३ ॥ ॐ अमरतरु- कामधेणु - चिंतामणि - कामकुंभमाइया । सिरिपासना ह सेवा - गहाण सव्वे विदातं ॥ ४ ॥ ॐ ॐ ह्रीं श्रीं ऐं ॐ तुह दंसणेण सामिय, पणा सेइ रोग-सोग-दोहग्गं । कप्पतरुमिव जायइ, ॐ तुह दंसणेण समफलहेडं स्वाहा ॐ ह्रीँ नमिऊण विष्वणासाय, मायावीएण धरणनागिंदं । सिरिकामराज क्ली (कलियं), पास जिणिदं नमसा मि ॐ श्रीं पासविसहर, विज्जा-मंत्रेण झाणज्झाअव्वो । घरण-पंडमात्रा देवी, ॐ ह्रीं क्ष्म्र्यु स्वाहा ||७|| जय धरणदेव, पढमहुत्ती नागिणी विज्जा । विमलज्झाणसहिओ, ॐ ह्रीँ क्ष्म्लवर्युं स्वाहा ॥ ८॥ ॐ थुणामि पासं, ॐ ह्रीं पणमामि परमभत्तीए । अट्ठक्खरधणिंद - पउमावईपयडियकित्तिं ।। ९ ।।
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परिशिष्टम्.
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