Book Title: Upsargahara Stotra Laghuvrutti
Author(s): Purnachandracharya, Bechardas Doshi
Publisher: Mohanlal Girdharlal Shah Bhavnagar
View full book text ________________
Jain Education Internati
तथा हुंकारगर्भ नाम कृत्वा बाह्ये ह्रीकारेण वेष्टयेत् ततोऽपि ॐ पार्श्वनाथाय स्वाहा - इत्यक्षरैर्वेष्टयेत् तत त्रिगुणमायावीजेन वेष्टयेत् — इति विषमविषनिग्रहकरं सप्तमं यन्त्रम् ।
अमीषां सप्तानामपि यन्त्राणां कुङ्कम- गोरोचनया भूर्वपत्रे स्वरूपं लिखित्वा कुमारीकर्तितसूत्रेण वेष्ट्य वामभुजधारणेन जगद्वल्लभ- सौभाग्य-लक्ष्मीवृद्धि-भूतादिनिग्रह -शाकिनीनिग्रह - विषमविषनिग्रहादि यथासंख्यं भवति । ॐ ह्रीं श्री हर हर स्वाहा — प्रथमं दिनत्रयं त्रिसन्ध्यमष्टोत्तरशतं जपेत् । पार्श्वनाथमभोर मन्त्रः सिध्यति । सर्वयन्त्रेषु अयमेव पूजामन्त्रः ।
७
ॐ ग्म्लन्टËगरखिशूलमुद्रया ग्र श्री यूँ ग्रौ ग्रः हा हा छिन्द छिन्द, भिन्द भिन्द, विदारय विदारय; क्लव्य बॉबी यूँ त्रौ त्रः हा हा ताडय ताडय, धन्य धाँ श्री धौ धः बुं युं कुट् इम्म्र्स हाँ ह्रीं हूँ हा हा हा ये ये ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल ॐ नमो भगवते पार्श्वयक्षाय चण्डक्रोधाय सप्तफटाविभूषिताय हुं भुं क्रु रमन्ट र सारा हा हा ओं को ही क्षी क्ली हूँ हूँ ही पार्श्वपक्षिणी ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, दह दह, पच पच, इदं भूतं निर्धाटय निर्धाटय, धूमान्धकारिणी ज्वल शिखेव, हुं हुं, फुट् फुड्, य यय यन्त्रमातृ दूतिका सहिते पार्श्वपक्षिणी आज्ञापयति स्वाहा । पार्श्व यक्षिणीमन्त्रः ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116