Book Title: Upsargahara Stotra Laghuvrutti
Author(s): Purnachandracharya, Bechardas Doshi
Publisher: Mohanlal Girdharlal Shah Bhavnagar
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तदुपरि अष्टदलानं दत्त्वा दले दले प्रत्येकं ॐ पार्श्वनाथाय ह्री श्री स्वाहा इत्यादि संलिख्य द्वादशदले हर] वाहर इत्यक्षरद्वयं न्यस्येत् । बाह्ये ड्वी क्षी हं सः इत्यक्षरैर्वेष्टनीयम् । बाह्ये हकारसंपुटम्, उपरि च एकारसंपुटं|8| 18|कृखा बहिः ड्वीकारेण त्रिधा वेष्टयेत् । इदं यन्त्रं कुङ्कम-कर्पूर-गोरोचना-(दि)सुरभिद्रव्यमूर्ये लिखित्वा ॐ डं|| 18हः पक्षि (?) (क्षिप) ड्वी क्ष्वी हं सः स्वाहा अनेन पूजा अष्टोत्तरशतसंख्यैः श्वेतपुष्पैर्दिनत्रयं यावत् शान्तिक-४| 8|पौष्टिक-भूत-प्रेत-पिशाच-शाकिनी-ज्वरादिभयं नाशयति । रक्षायां कुमारीसूत्रेणाऽऽवेष्ट्य बाहौ धार्यम्-सर्वत्रापि |रक्षा स्यात् ॥ ___ अधुना कतिचिद् मन्त्री गद्यन्ते बृहद्वत्तिकथिताः
ॐ @ वं ए हां आँ क्रो क्षी द्रो क्ली ब्लू द्राँ द्रौ ज्वालामालिनी झंकारिणि विषं निर्विषं कुरु ।। कुरु, स्थावरविषम्, जंगमं च, कृत्रिमम्, जाठरम्, योगजम्-अपहर अपहर, इमं डंकम्-अमृतेन सिंचय सिंचय, उत्थापय उत्थापय, दण्डेनाऽऽक्रम्य विषमविषं ठः स्वाहा ।
१ पुस्तके-लिख्य'। २ पुस्तके-'मन्त्रा यां' ३ पुस्तके-जोगजम् ।
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उपस०४ Jain Education Interna
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