Book Title: Upsargahara Stotra Laghuvrutti
Author(s): Purnachandracharya, Bechardas Doshi
Publisher: Mohanlal Girdharlal Shah Bhavnagar

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Page 22
________________ 0000000000 यति, केषांचिद् भूतातिभयं निषेधयति । 18! तथा ॐ ह्री श्री इत्यक्षरत्रयान्तरितं नाम कृखा बाह्ये षोडशदलाब्जे प्रत्येक ही श्री देयम् । उपरि चा8 क्षिप ॐ स्वाहा इति मन्त्रेण सर्वतो वेष्ट्यम् , ततत्रिगुणमायया वेष्ट्यम् । इदं पूर्वोक्तमन्त्रयुक्त्यार्चितं दुर्भ-18 गानां सौभाग्यं करोति, अपस्मारादिपीडा याति । परं गुरुपूजापूर्व सर्वत्र प्रवृत्तिः कार्या, अन्यथा न सिद्धिः, 8 8| उक्तक्रमलोपात्-पादलिप्तगुरोर्वचः। इति तृतीयगाथार्थः ॥ तुर्यगाथामाहतुह सम्मत्ते लद्धे चिन्तामणि-कप्पपायवऽभाहिए। पावति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं ॥४॥ है। पानुवन्ति अविघ्नेन जीवा अजरामरस्थानम्, क्व सति ? तव सम्यक्त्वे चिन्तामणि-कल्पपादपाभ्यधिक है। पलब्धे सति-इति गाथार्थः ॥ अत्र आम्नायः आदौ पार्श्वनाथं परिकल्प्य, दक्षिणे धरणेन्द्रम्, वामे पद्मा संकल्प्य उपरि ब्रह्माणम्-अधोऽङ्गनानामानि 18 * तब सम्यक्त्वे लब्धे चिन्तामणि-कल्पपादपाभ्यधिके । प्राप्नुवन्ति अविघ्नेन जीवा अजरामरस्थानम् ॥ ४ ॥ 000000000000000000 00000000000 Jain Education Inter nal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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