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(दुर्गतगृहे गृहिणी रक्षन्त्याकुलत्वं पत्युः । पृष्टदोहदश्रद्धोदकमेव दोहदं कथयति)
दरिद्र के घर में घरवाली
जो माँ बनने को है
पति के पूछने पर कि क्या कुछ चाहिए
उसकी आकुलता लख उत्तर देती है- कुछ नहीं
संस्कृत और प्राकृत की सहवर्तिताः
वैदिक यज्ञों में गाया जाने वाला गाथा छन्द प्राकृत साहित्य में गाहा के रूप में आया । प्राकृत में आकर यह ऐसा सरस मधुर और मनोहर हो गया कि संस्कृत कवियों ने प्राकृत गाथाओं को अपनी कविता में उतारा, तो काव्यशास्त्र के आचार्यों ने भी इन गाथाओं को अपने सिद्धान्तों की पुष्टि में अनेकशः उद्धृत किया। पर संस्कृत और प्राकृत साहित्य के बीच आदान-प्रदान की यह प्रक्रिया एकतरफा नहीं रही, कालिदास और अमरूक जैसे महाकवियों की कविता का प्रभाव वज्जालग्ग के परवर्ती कवियों की गाथाओं में फिर देखा जा सकता है। संस्कृत और प्राकृत की सहवर्तिता इसी तरह निरंतर बनी रही।
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...केवल पानी..
ईसा की पहली सहस्राब्दी को हम संस्कृत और प्राकृत की अन्तर्निर्भरता और सहअस्तित्व की शताब्दी कह सकते हैं। महाकाव्यों में पउमचरिउ, सेतुबंध और गउडवहो जैसी रचनाएँ कालिदास और भारवि, माघ, श्रीहर्ष की बृहत्-त्रयी के महाकाव्यों के साथ संवाद और अंतः क्रिया की प्रक्रिया का साक्ष्य देती हैं। संस्कृत में अष्टादश पुराणों और उपपुराणों की रचना पहली सहस्राब्दी में हो रही थी, तो प्राकृत में महापुराण, हरिवंशपुराण, जम्बुसामिचरिउ आदि की रचना हो रही थी। कथा और आख्यान की परम्परा में प्राकृत साहित्य की समृद्धि और उपलब्धियाँ संस्कृत
कथा साहित्य से अधिक विशिष्ट हैं। तरंगवतीकहा, कुवलयमालाकहा, लीलावईकहा, निव्वाणलीलावई, विलासवईकहा, समराइच्चकहा, पुप्पवईकहा, सुरसुन्दरीकहा, मनोरमाचरिअ, नम्मायासुन्दरीकहा आदि कथाओं में भारतीय कथा परम्परा के दुर्लभ उदाहरण संचित हैं।
प्राकृत सिखाने के लिए संस्कृत माध्यम और संस्कृत व्याकरण का आश्रय लिया जाता रहा। वररूचिका प्राकृत प्रकाश या प्राकृतसूत्र तीसरी चौथी शताब्दी में रचित माना गया है। इसमें मुख्यतया संस्कृत के माध्यम महाराष्ट्री प्राकृत सिखाई गई है, संस्कृत से महाराष्ट्री में रूपान्तर के लिये नियम निर्दिष्ट किये गये हैं। यही स्थिति मार्कंडेय के प्राकृत प्रकाश तथा अन्य व्याकरणों की भी है। कहा जाता है कि संस्कृत भाषा जनसामान्य की भाषा नहीं रह गई। पर साहित्य में जिन प्राकृतों का प्रयोग मिलता है, वे जनसामान्य की भाषा रहीं हो, ऐसा नहीं लगता। प्राकृत क्लासिकी भाषा के रूप में रूढ हो चुकी थी ।
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