Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
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२. भावसंग्रह -
भट्टारक श्रुतमुनि ने भाव संग्रह नामक ग्रन्थ प्राकृत में लिखा है , जो देवसेन के भावसंग्रह के अनुकरण पर लिखा गया है । भट्टारकीय ग्रन्थ भण्डार नागौर में इस भावसंग्रह की तीन पाण्डुलिपियाँ संग्रहीत हैं। ३. षटत्रिशंतिगाथासार्थः -
मुनिराज ढाढसी ने ३६ गाथाओं में एक रचना लिखकर उसकी संस्कृत में व्याख्या भी लिख है। सात पन्नों की एक प्रति नागौर में उपलब्ध है , जो सं . १६८५ की लिखी हुई है। ४. षद्रव्यसंग्रह टिप्पण -
भट्टारक प्रभाचन्द्र देव ने प्राकृत के द्रव्यसंग्रह पर संस्कृत में टिप्पण लिखा है । इसकी १९ पन्नों की पाण्डुलिपि नागौर ग्रन्थ भण्डार में प्राप्त है। ५. श्रुतस्कन्ध -
ब्रम्ह हेमचन्द्र ने प्राकृत में श्रुतस्कन्ध नामक कृति लिखी है , जिसमें जैन सिद्धान्त का विवेचन है । इसकी चार प्रतियाँ नागौर ग्रन्थ भण्डार में उपलब्ध हैं। आठ पन्ने की प्रति वि. सं. १५३१ की है , अतः ब्रम्ह हेमचन्द्र ने इसके पूर्व कभी इस रचना का निर्माण किया होगा। ६. जीवप्ररूपण
कवि गुणरयण भूषण ने प्राकृत में जीवप्ररूपण नामक ग्रन्थ लिखा है। इसकी एक पाण्डुलिपि नागौर ग्रन्थभण्डार में प्राप्त है, जो २८ पन्नो की है । यह पाण्डुलिपि वि. सं. १५११ में लिखी गयी है, अतः कवि का समय इससे पूर्व होगा। ७. समयसारवृत्ति -
श्री भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति के शिष्य भट्टारक जिनचन्द्रसूरि ने सं. १७८८ में ईसरदान नगर के चन्द्रप्रभ मंदिर में समयसारवृत्ति नामक ग्रन्थ लिखा है । समयसार पर अमृतचन्द्र की टीका पर यह स्याद्वादचूलिका वृत्ति लिखी गयी है । कुल १२१ पन्नों में लिखित समयसारवृत्ति की पाण्डुलिपि जयपुर के मारूजी के जैन मंदिर के भण्डार में उपलब्ध है। ८. वैद्यकशास्त्र -
पाण्डेय लूनकरन जैन मंदिर जयपुर के ग्रन्थ भण्डार में २१ पन्नों की एक पाण्डुलिपि प्राप्त है , जो वैद्यकशास्त्र है। इस प्राकृत ग्रन्थ को कवि हरपाल ने लिखा है । ग्रन्थ की आदि और अन्त भाग इस प्रकार है -
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