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आगम साहित्य में उपलब्ध कथाएँ धार्मिक वातावरण के साथ-साथ वर्णनों के कारण कहीं कहीं बोझिल प्रतीत होती हैं, किन्तु आगमों पर लिखे गये व्याख्या - साहित्य में कथा-साहित्य और भी पुष्पित व पल्लवित हुआ। नियुक्तियों व चूर्णियों में ऐतिहासिक, धार्मिक, लौकिक आदि कई प्रकार की कथाएँ उपलब्ध हैं । सूत्रकृतांगचूर्णि में आर्द्रककुमार, अर्थलोभी वणिक आदि के सुन्दर कथानक हैं। आवश्यकचूर्णि में वर्णित कथाएँ उपदेशों के साथ-साथ लोक जीवन की अभिव्यक्ति भी करती है। इस ग्रंथ की कथाएँ सरस व मनोरंजक हैं। इनमें से कई कथाएँ आज भी लोक प्रचलित हैं। दशवैकालिकचूर्णि में ' ईर्ष्या मत करो', ' अपना-अपना पुरुषार्थ' और 'गीदड़ की राजनीति 'सुन्दर लोक कथाएँ हैं। व्यवहारभाष्य व बृहत्कल्पभाष्य में प्राकृत की उपदेशप्रद व नीतिकथाएँ बहुलता से प्राप्त होती हैं।
आगम टीका साहित्य कथाओं का भंडार ही है। आचार्य नेमिचन्द्रसूरी द्वारा उत्तराध्ययन की सुखबोधा टीका में लगभग एक सौ पच्चीस कथाएँ वर्णित हैं। इन कथाओं में रोमांस, मनोरंजन, नीति, उपदेश, हास्य-व्यंग्य आदि समस्त तत्त्वों का समावेश पर्याप्त मात्रा में हुआ है। ये कथाएँ न केवल उपदेशात्मक हैं, अपितु मनोरंजक एवं चमत्कारी भी हैं।
भारतीय लोक कथा साहित्य के उद्गम एवं विकास-यात्रा को जानने की दृष्टि से प्राकृत कथा साहित्य महत्त्वपूर्ण साधन है। प्राकृत कथा-साहित्य भाषा-विज्ञान एवं जैन तत्त्वदर्शन तथा सिद्धान्तों को जानने का माध्यम ही नहीं अपितु भारत के गौरवपूर्ण इतिहास व संस्कृति के निर्माण में इस साहित्य की महत्त्वपूर्ण देन है। इन कथाओं जैन धर्म के गूढ़ एवं क्लिष्ट सिद्धान्तों का प्रणयन प्रायः जैनाचार्यों ने कथाओं के माध्यम से ही किया है। कथाओं का अवलम्बन लेकर तप, संयम, अनेकान्त, लेश्या, कर्मसिद्धान्त, निदान प्रभृति जैन तत्त्वदर्शन के विषयों का प्रतिपादन इन कथाओं में मिलता है। इन कथाओं में धार्मिक मूल्यों के साथ-साथ प्राकृत कथाकृतियों में सहिष्णुता, धैर्य, पुरुषार्थ, साहस जैसे सामाजिक मूल्यों को भी बड़ी ही सुन्दरता से उकेरा गया है।
प्राकृत कथा साहित्य मानवता का पोषक साहित्य है। इस साहित्य में मनुष्य भव को ही प्रधानता दी गई है। धर्म, साधना, जाति, वर्ण आदि भेदक तत्त्वों को गौण रखकर अहिंसा, संयम, तप आदि आध्यात्मिक मूल्यों के आधार पर मानव की उच्चता या अधमता का मूल्यांकन किया गया है। आत्मानुभूति एवं समत्व के सिद्धान्त के आधार पर दान, सेवा, परोपकार, विनय, सदाचार जैसे मानवीय मूल्य इस साहित्य में उद्घाटिक हुए हैं। लोक कल्याणकारी तत्त्वों से प्रेरित होने के कारण प्राकृत आगमिक कथानकों में सुभाषितों एवं लोकोक्तियों का भी प्रयोग हुआ है। कथाओं में प्रयुक्त वाक्चातुर्य, संवाद, बुद्धि - चमत्कार, हेलिका, प्रहेलिका, समस्यापूर्ति, सूक्तियाँ, कहावतों आदि माध्यम से अनेक मूल्यों का प्रतिपादन किया गया है ।
साधारणतः कथा-साहित्य का उद्देश्य ज्ञानवर्द्धन अथवा मनोरंजन करना होता है, किन्तु प्राकृत कथा साहित्य के सम्बन्ध में यह बात कही जा सकती है कि इस परम्परा में लिखे गए अधिकांश ग्रंथों का उद्देश्य मनोरंजन
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