Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan

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Page 322
________________ प्रस्तुत कृति में संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश की त्रिवेणी प्रवाहित है। ग्रंथ के अधिकांश आख्यानक प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। किन्तु, कुछ आख्यानकों में संस्कृत एवं अपभ्रंश भाषा का भी प्रयोग हुआ है । विषय विविधता की दृष्टि से इस कोश की कथाएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । कथाओं में धर्मतत्त्व के साथ-साथ लोकतत्त्व भी विद्यमान हैं। दृष्टान्तों माध्यम से जीवन व जगत् से सम्बन्धित सभी तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। आख्यानकमणिकोशवृत्ति एवं वैश्विक मूल्य साधारणतः कथा साहित्य का उद्देश्य ज्ञानवर्द्धन अथवा मनोरंजन करना होता है, किन्तु प्राकृत का साहित्य के सम्बन्ध में यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि इस परम्परा में लिखे गए अधिकांश ग्रंथों का उद्देश्य मनोरंजन के उच्चतर सामाजिक, नैतिक अथवा आध्यात्मिक मूल्य की प्रतिष्ठा करना भी रहा है। प्रायः प्रत्येक कथा चाहे वह छोटी हो या बड़ी उसका मुख्य उद्देश्य अशुभ कर्मों के कटु परिणाम बताकर मानव को अहिंसा, त्याग, सदाचार अथवा व्रताचार की सत्प्रेरणा प्रदान करना है। इसी परम्परा के प्रतिनिधि ग्रंथ सवृत्ति - आख्यानकमणिकोश के कथानक भी सार्वभौमिक एवं लोककल्याणकारी मूल्यों का आगार हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में विभिन्न कथानकों के माध्यम से ऐसे धार्मिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की अभिव्यंजना की गई है, जो मनुष्य को परम शान्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। चूँकि इस कथाकोश के वृत्तिकार आचार्य आम्रदेवसूरि स्वयं जैनाचार्य थे। उन्होंने अहिंसा, सत्य, संयम, त्याग, तप तथा वैराग्य की अग्नि में अपने जीवन को तपाकर आत्मा को आलोकित किया था। यही कारण है कि उनके द्वारा प्रणीत सवृत्ति आख्यानमणिकोश के कथानक निरर्थकता एवं उद्देश्यहीनता के दोष से मुक्त विभिन्न वैश्विक मूल्यों की प्रतिष्ठापना करने वाले हैं। अहिंसा, सम्यक् श्रद्धा आदि धार्मिक मूल्यों के साथ-साथ इस ग्रंथ के कथानकों में दान, स्वाध्याय, विनय, धैर्य, सहिष्णुता जैसे सामाजिक मूल्यों को भी बड़ी सुन्दरता से उकेरा गया है। वस्तुतः सवृत्तिआख्यानकमणिकोश मानवता का पोषक कथा ग्रंथ है। वर्ण एवं जाति प्रथा के संकुचित दायरे को तोड़कर इस ग्रंथ की अनेक कथाएँ मानवतावाद की प्रतिष्ठा करने वाली हैं। चित्तसंभूत, नन्दीषेण, हरिकेशी आदि आख्यानकों में ऊँच-नीच के भेदभाव को अस्वीकार कर विश्व स्तर पर मानवता का संदेश प्रसारित हुआ है। ये कथानक जाति, वर्ण आदि भेदक तत्त्वों को गौण कर अहिंसा, संयम, तप आदि गुणों के आधार पर मानव की उच्चता का मूल्यांकन प्रस्तुत करते हैं। यहाँ कुछ लोककल्याणकारी वैश्विक मूल्यों का विवेचन अपेक्षित है। अहिंसा आज विश्व में सर्वत्र अव्यवस्था एवं अशान्ति फैली हुई है। आतंकवाद, नक्सलवाद, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद आदि की बढ़ती प्रवृत्ति पूरे विश्व को आतंकित किए हुए है। सम्पूर्ण मानवता विनाश के कगार पर खड़ी मानों किसी मसीहा की प्रतिक्षा कर रही है। यह मसीहा अहिंसा के अतिरिक्त कौन हो सकता है ? अहिंसा ही विश्व शान्ति का मुख्य आधार है। प्राकृत कथा साहित्य का जितना गहरा सम्बन्ध अहिंसा से है उतना सम्भवतः किसी अन्य विषय Jain Education International 280 - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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