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बाला है। इस आख्यानक में मानव की श्रेष्ठता का मूल्यांकन अहिंसा, तप, त्याग जैसी सदवृत्तियों के आधार पर किया गया है। जाति से चाण्डाल होने पर भी हरिकेशी अपने सत्कर्मो के कारण ब्राह्मणों में पूज्य हो जाते हैं। आज के वैमनस्यपूर्ण वातावरण में जाति एवं सम्प्रदाय सहिष्णुता अत्यन्त अभिप्रेत है। चूँकि सवृत्तिआख्यानकमणिकोश के कथानक जातिगत आधार पर मानवता के विकास को निन्दनीय मानकर सामाजिक समानता एवं मानवक्ल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। अतः वर्तमान परिपेक्ष्य में इनका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
अन्त में निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि आख्यानकमणिकोशवृत्ति में कुछ ऐसे दिशा निर्देशक वैश्विक मूल्य उजागर हुए हैं, जो मानव कल्याण के साथ-साथ प्राणीमात्र को जीवन की सुरक्षा प्रदान करते हैं। समस्त नैतिक चिन्तन पर आज भी इनका प्रभाव परिलक्षित होता है। प्राकृतग्रंथों में से ऐसे वैश्विक मूल्यों को खोजकर आधुनिक सन्दर्भ में उनकी प्रासंगिकता को प्रस्तुत करना शोध का मुख्य लक्ष्य है। वर्तमान परिपेक्ष्य में इ मूल्यों की प्रतिस्थापना से व्यक्ति की मूल्यात्मक चेतना तो विकसित होगी ही, समाज में नैतिकता के फूल भी
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संदर्भ
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