Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan

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Page 327
________________ बाला है। इस आख्यानक में मानव की श्रेष्ठता का मूल्यांकन अहिंसा, तप, त्याग जैसी सदवृत्तियों के आधार पर किया गया है। जाति से चाण्डाल होने पर भी हरिकेशी अपने सत्कर्मो के कारण ब्राह्मणों में पूज्य हो जाते हैं। आज के वैमनस्यपूर्ण वातावरण में जाति एवं सम्प्रदाय सहिष्णुता अत्यन्त अभिप्रेत है। चूँकि सवृत्तिआख्यानकमणिकोश के कथानक जातिगत आधार पर मानवता के विकास को निन्दनीय मानकर सामाजिक समानता एवं मानवक्ल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। अतः वर्तमान परिपेक्ष्य में इनका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। अन्त में निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि आख्यानकमणिकोशवृत्ति में कुछ ऐसे दिशा निर्देशक वैश्विक मूल्य उजागर हुए हैं, जो मानव कल्याण के साथ-साथ प्राणीमात्र को जीवन की सुरक्षा प्रदान करते हैं। समस्त नैतिक चिन्तन पर आज भी इनका प्रभाव परिलक्षित होता है। प्राकृतग्रंथों में से ऐसे वैश्विक मूल्यों को खोजकर आधुनिक सन्दर्भ में उनकी प्रासंगिकता को प्रस्तुत करना शोध का मुख्य लक्ष्य है। वर्तमान परिपेक्ष्य में इ मूल्यों की प्रतिस्थापना से व्यक्ति की मूल्यात्मक चेतना तो विकसित होगी ही, समाज में नैतिकता के फूल भी खिलेंते । १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. संदर्भ आख्यानकमणिकोश, रचनाकार-आचार्य नेमिचन्द्रसूरि वृत्तिकार आचार्य आम्रदेवसूरि सम्पादक मुनि पुण्यविजयजी, प्राकृत ग्रंथ परिषद्, वाराणसी, १९६२ ई. उत्तराध्ययनसूत्र, सम्पादक- मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन, प्रो. प्रेम सुमन जैन, वैशाली, १९७५ जैनकथामाला, भाग-१ से ५६, सम्पादक- मुधुकर मुनि, हजारीमल स्मृति प्रकाशन, ब्यावर जैन कथाएँ, देवेन्द्रमुनि शास्त्री, तारक गुरु ग्रंथालय, उदयपुर जैन कहानियाँ (मासिक पत्रिका), अंक ११२-११३ जैन प्रकाशन, पाली जैन कथा साहित्य विविध रूपों में, डॉ जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर जैन संस्कृति कोश, प्रो. भागचन्द्र भास्कर, कला प्रकाशन, वाराणसी जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज, डॉ. मोहनचन्द्र, इस्टर्न बुक लिंकर्स, बिल्ली तीर्थंकर महावीर एवं उनकी आचार्य परम्परा, भाग १ से ४, डॉ. नेमिचन्द शास्त्री, आ. शान्तिसागर छाणी ग्रंथमाला, १९९२ दो हजार बरस पुरानी कहानियाँ, डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, १९७७ दिवाकर चित्र कथाएँ, भाग-१ से १११, दिवाकर प्रकाशन, आगरा, भारती अकादमी, जयपुर नन्दीसूत्र, सम्पादक मुनि मधुकर, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, डॉ. गोकुलचन्द जैन, वाराणसी, १९६७ हरिभद्र प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली, बिहार, १९६५ आख्यानकमणिकोश, मूल, आ. ११७, ११२ १११, ८४ आदि । Jain Education International -0-0-0 -285 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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