Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan

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Page 313
________________ जैन वाङ्मय में कथा के स्वरूप पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। न्यायदीपिका के अनुसार अनेक प्रवक्ताओं के विचार का जो विषय या पदार्थ है, उनके वाक्य सन्दर्भ का नाम कथा है - नाना प्रवक्तृत्वे सति तद्विचारवस्तुविषया वाक्यसंपदलब्धिकथा ' भारतीय कथा साहित्य के गर्भ में दो उद्देश्य निहित रहते हैं - १) उपदेश तथा २) मनोरंजन। इसी आधार पर प्राप्त कथा साहित्य को भागों में विभाजित किया जा सकता है - १. नीति कथा (Didactic Fable) २. लोक कथा (Popular tale) १. नीति कथा - ___ नारायण पण्डित ने नीति कथाओं का प्रयोजन बताते हुये कहा है कि नीति कथाओं में बालकों को कथाओं के माध्यम से नीति की शिक्षा दी जाती है - 'कथाच्छलेन बालानां नीतिस्तदिह कथ्यते।' इससे स्पष्ट है कि नीति कथा ग्रंथों में नीति एवं धर्म के विषयों का प्रतिपादन रहता है। इनमें नीति का उल्लंघन न करना, आपत्ति-विपत्ति में धैर्य न छोडकर साहस से कार्य करना, मित्र की रक्षा करना आदि का सरल एवं शीघ्रानुकरणीय चित्रण होता है। नीति कथाओं के पात्र मनुष्य जाति के न होकर तिर्यक् जाति के पशु-पक्षी आदि होते हैं। ये पशु-पक्षी ही मानववत् अपना सभी कार्य व्यापार करते हैं। इनमें मित्रता-शत्रुता, राग-द्वेष, सन्धि-विग्रह आदि मनुष्य के समान ही देखे जाते हैं। इन्हें अपने हित-अहित, मान-अपमान का पूर्ण ध्यान रहता है। इस नीति ग्रंथों की वर्ण्य कथा गद्यात्मक होती है तथा जहाँ कहीं नीति अथवा उपदेश देना होता है, वहाँ पर पद्यों का प्रयोग होता है। ये पद्य पूर्ववर्ती नीतिग्रंथों से उद्धृत किये जाते हैं। इन नीति वचनों से पूर्वकथन की पुष्टि की जाती है। २. लोक कथा - लोक कथायें भी नीतिकथाओं के अधिकांश लक्षणों से ही युक्त होती हैं। दोनों में जो वैभिन्य है, वह निम्नलिखित रूप में दृष्टव्य है _____i) नीति कथायें मुख्यतः उपदेशात्मक होती हैं, जबकि लोक कथायें मनोरंजनात्मक। नीति कथाओं की योजना में कवि का प्रधान लक्ष्य मनुष्य मात्र को नैतिक उपदेश एवं शिक्षा देने का होता है, जिससे वह अपने व्यावहारिक जीवन में सदा सफल रहें, कहीं भी वह निराशा अथवा अपमान का अनुभव न करें, परन्तु लोककथाओं के चित्रण में कवि का ध्यान उन्हें अधिक आकर्षक एवं सरस बनाने का रहता है। ___ii) नीति कथाओं के पात्र तिर्यक् जाति में पशु-पक्षी-शेर, बन्दर चूहा, तोता, मैना, कौआ आदि होते हैं, परन्तु लोककथाओं के पात्र अधिकतर मनुष्य जाति के ही होते हैं, कभी-कभी-एकाग्र स्थल पर पात्र रूप में पशुपक्षी दृष्टिगोचर हो जाता है। -- 271 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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