Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan

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Page 310
________________ सर्वनाम संस्कृत भाषा में प्रयुक्त होने वाले निम्नलिखित सर्वनाम प्रस्तुत मागधी प्राकृत में प्रायः ज्यों के त्यों प्रयुक्त हैं - अहं (पृ.३४) अस्मद् (प्रथमा का एकवचन), मम (पृ.३४) अस्मद् (षष्ठी का एकवचन) मे (पृ.१.८,१.१०) अस्मद् (चतुर्थी और षष्ठी का एकवचन), तव (पृ.२१,३४) युस्मद् (षष्ठी का एकवचन)शा (पृ.३४) सा, तत् (स्त्रीलिंग ) का एकवचन) विभक्ति एवं धातु रूप प्राकृत में प्रायः संस्कृत के समान ही कारकों की व्ययस्था है, किन्तु संस्कृत और प्राकृत की विभक्तियों में अन्तर पाया जाता है। प्रस्तुत मागधी प्राकृत में इसकी अपनी अलग विभक्तियाँ है यथा प्रथमा एकवचन में विसर्ग के स्थान पर ए, षष्ठी एकवचन में स्य के स्थान पर श्श आदि। सम्बोधन में संस्कृत के समान ही प्रथमा विभक्ति का प्रयोग हुआ है। यथा - वशंचसेणिआ आदि। वास्तविक बात यह है कि प्राकृत में विभक्तियों के व्यवहार का कोई विशेष नियम नहीं हैं। कहीं द्वितीया और तृतीया के स्थान में सप्तमी कहीं पंचमी के स्थान में तृतीया तथा सप्तमी और बदले द्वितीया विभक्तियाँ व्यवहृत होती हैं। धातु रूपों में भी संस्कृत के समान प्राकृत के प्रत्यय जोडे जाते हैं। धातु रूपों में संस्कैत के समान मात्र वर्तमान काल के उ.पु. एकवचन में आमि प्रत्यय का प्रयोग परिलक्षित होता है। ___ यथा - आहळामि आहरामि, जाणामि जानामि आदि। अन्य धातु प्रत्यय इसके अपने हैं। यथा - इ, हि, दा, शि, दे आदि। ___ वस्तुतः ई.पू. में यदि किसी प्राकृत भाषा की स्पष्ट उपस्थित दृष्टिगोचर होती है, तो वह है - मागधी प्राकृत। अशोक के शिलालेखों में इस भाषा का सर्वाधिक प्रयोग है, जो इसके राज-भाषा होने के सूचक भी हैं। अशोक के पूर्व भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध की वाणी भी इस भाषा से प्रभावित रही है। मगध साम्राज्य की दीर्घकालीन प्राचीन परम्परा और राज-भाषा के रूप में इसकी प्रतिष्ठा से सूचित होता है कि मगध साम्राज्य की तरह ही यह मागधी भाषा भी पुरातन काल में जन बोली के रूप में व्यवहृत होती रही है। भरत के नाट्यशास्त्र से भी विदित होता है कि उनके समय में मागधी राजमहलों में परिचरों के मध्य व्यवहृत भाषा थी। सभी प्राकृतों में सर्वप्रथम मागधी को ही शिलालेखी साहित्य के रूप में साहित्यिक भाषा होने का गौरव प्राप्त है। इसकी सुदीर्घ परम्परा मगध-साम्राज्य की स्थापना से लेकर मध्यकालीन नाट्य-ग्रंथों के प्रणयन तक दृष्टिगोचर होती है। 'चारुदत्तं ' की मागधी प्राकृत में पालि के समान ' र ' और 'ळ' दोनों ध्वनियाँ विद्यमान हैं तथा इसमें भी पालि की तरह विकल्प से 'ण' के स्थान पर 'ळ ' प्रयुक्त है। ये विशिष्टताएँ इस भाषा की प्राचीनता के द्योतक हैं। मागधी की प्राचीनतम परम्परा में 'चारुदत्तं ' की मागधी का स्वरूप भले सर्वप्राचीन न हो, प्राचीनतर अवश्य है और यही इसकी पेमुख विशिष्ता भी है। -268 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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