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महाकवि देवचन्द्र ने अपनी 'राजावलिकथे' में कन्ती विषयक एक रोचक घटना का चित्रण किया है। उसके अनुसार दोरराय ने दोरसमुद्र नामक एक विशाल जलाशय का निर्माण कराया तथा एक ब्राह्मणकुलीन धर्मचन्द्र को अपने मन्त्री के पद पर नियुक्त कर लिया था। उस मन्त्री का पुत्र वहीं शिक्षक का कार्य करने लगा। उसकी विशेषता यह थी कि वह ज्योतिष्मती नामकी एक विशिष्ट तैलौषधि का निर्माण करता था, जो बुद्धिवर्धक थी। वह मन्दबुद्धि वालों की बुद्धि बढ़ाने के लिये एक खुराक में यद्यपि केवल आधी-आधी बूँद ही देता ता, लेकिन लोग उसका साक्षात् प्रभाव देखकर आश्चर्यचकित कर जाते थे । कन्तीदेवी भी औषधि का सेवन करती थी। एक दिन अवसर पाकर तत्काल ही तीव्र बुद्धिमति बनने के उद्देश्य से उसने एक ही बार में उस दवा का अधिक मात्रा में पान कर लिया। अधिक मात्रा हो जाने के कारण उसके शरीर में इतनी दाह उत्पन्न हुई कि उसे शान्त करने के लिये वह दौड़कर कुएँ में कूद पड़ी। कुआँ अधिक गहरा न था । अतः वह उसी में खड़ी रही। उसी समय उसमें कवित्व-शक्ति का प्रस्फुरण हुआ और तार स्वर से वह स्वानिर्मित कविताओं का पाठ करने लगी। उसकी कविताएँ सुनकर सभी प्रसन्न हो उठे ।
राजा दोराय को जब यह सूचना मिली, तो उन्होंने अपने परम - विश्वस्त, उभयभाषा - चक्रवर्ती अभिनवपम्प को उसकी परीक्षा लेने हेतु उसके पास भेजा। वहाँ जाकर पम्प ने उससे जितने भी कवित्व-मय प्रश्न किये, कन्ती ने उन सभी का सटीक उत्तर देकर पम्प को विस्मित कर दिया । दोरराय ने यह सुनकर तथा उसकी अलौकिक काव्य-प्रतिभा से प्रसन्न होकर तत्काल ही अपनी विद्वत्सभा का सदस्य घोषित किया तथा उसे 'अभिनव - वाग्देवी' के अलंकरण से अलंकृत किया। सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. आर. नरसिंहाचार्य की मान्यता के अनुसार उक्त दोर राय का अपरनाम ही बल्लाल था और उसकी राज्य सभा में महाकवि अभिनव पम्प, कन्ती आदि प्रसिद्ध कवियों का
जमघट रहता था।
कन्ती की श्रंखलाबद्ध रचनाएँ वर्तमान में अनुपलब्ध हैं। कन्ती - पम्पन समस्येगळु इस नाम से कुछ प्रकीर्णक पद्य अवश्य मिलते हैं। उन्हें देखकर यह विदित होता है कि समस्या-पूर्ति करने में वह उसी प्रकार निपुण थी. जिस प्रकार की चम्पा-नरेश कोटिभट्ट श्रीपाल की महारानी और उज्जयिनि- नरेश राजा पुहिपाल की पुत्री - राजकुमारी मैंनासुन्दरी।
कन्नड़-साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान् पं. के. भुजबली शास्त्री के अनुसार 'कन्ती पम्पन समस्येगळु' इस नाम के जो भी पद्य वर्तमान में उपलब्ध होते हैं. वे साहित्य की दृष्टि से अत्यन्त सुन्दर हैं. यहाँ पर उनमें से केवल एक पद्य, जो कि निरोष्ठ्य-काव्य का उदाहरण है, प्रस्तुत किया जा रहा है -
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सुर नगर नागाधीश । हीरकिरीटाग्रलग्नचरणसरोजा । धीरोदारचरित्रोत्सारितकलुषौधरक्षिसल्करिनहाँ ॥
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