Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan

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Page 299
________________ भक्त बतलाया गया है। उसी प्रस्तर में एक अन्य दृश्य भी उत्कीर्णित है, जिसमें इस वीर महिला को घोड़े पर सवार दिलाते हुए हाथ में तलवार उठाए, अपने सम्मुख आते हुये हाथी पर सवार एक योद्धा पर प्रहार करते हुये चित्रित किया गया है। घटना स्थल का नाम बगेयुर लिखा हुआ है। बहुत सम्भव यह बेगयुर वही दुर्ग हो, जिस पर आक्रमण करके महासेनापति चामुण्डराय ने राजा त्रिभुवन वीर को युद्ध में मारकर बैरिकुलकालंदण्ड का विरुद प्राप्त किया था। बहुत सम्भव इसी युद्ध में लोक-विद्याधर और उसकी वीरांगना पत्नी सावियब्बे भी चामुण्डराय की ओर से 'युद्ध में सम्मिलित हुए हों ? दृढ संकल्पी माता कालला देवी कर्नाटक को दक्षिणांचल की अतिशय तीर्थभूमि श्रवणबेलगोला के निर्माण का श्रेय जिन यशस्विनी महिमामयी महिलाओं को दिया गया है, उनमें प्रातः स्मरणीय तीर्थस्वरूप माता कालला देवी (१०वीं सदी) का स्थान सर्वोपरि है। यह वही सन्नारी है, जिसने पूर्वजन्म में सुकर्म किये थे और फलस्वरुप वीर पराक्रमी रणधुरन्धर सेनापति चामुण्डराय जैसे देवोपम श्रावकशिरोमणि पुत्ररत्न की माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त किया था। वह प्रतिदिन शास्त्र-स्वाध्याय के लिये दृढ़ प्रतिज्ञा थी । उसने एक दिन अपने गुरुदेव आचार्य अजितसेन के द्वारा आदिपुराण में वर्णित पोदनापुराधीश-बाहुबली की ५२५ धनुष उत्तुंग हरित्वर्णीय पन्ना की भव्य मूर्ति का वर्णन सुना तो वह भाव विभोर हो उठी। इसकी चर्चा उसने अपने आज्ञाकारी पुत्र चामुण्डराय से की और उसके दर्शनों की इच्छा व्यक्त की, तो वह भी अपने हजार कार्य छोडकर अपनी माता की मनोभिलाषा पूर्ण करने हेतु अपने गुरुदेव सि.च. नेमिचन्द्र के साथ उस मंगल मूर्ति का दर्शन करने के लिये तक्षशिला (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित ) के पास पोदनपुर की यात्रा के लिये निकल पड़ा। यह यात्रा काफी लम्बी थी । चलते-चलते वे सभी कटवप्र के एक बीहड़ वन में रात्रि विश्राम के लिये विरमित हो गए। रात्रि के अन्तिम प्रहर में उन तीनों ने एक-सदृश स्वप्न देखा कि जिसमें देवी उन्हें कह रही है कि 'जहाँ तुम लोक विश्राम कर रहे हो, उसी के सामने वाली पहाड़ी के शिखराग्र पर एक अभिमन्त्रित शर सन्धान करो। वहीं से तुम्हें बाहुबलि के दर्शन हो जाएगा ।' प्रातःकाल होते ही धनुर्धारी चामुण्डराय ने अपने सामने की पहाड़ी (विंध्यगिरि) की शैल - शिला पर णमोकार मंत्र का उच्चारण कर शर-सन्धान किया और ऐसी अनुश्रुति है कि बाण लगते ही पत्थर की परतें टूटकर गिरी और उसमें से गोम्मटेश बाहुबली का शीर्षभाग स्पष्ट दिखाई देने लगा। बाद में शिला को अरिष्टनेमी ने बाहुबली की मूर्ति का रूप प्रदान किया। धन्य है, वह माता कालला देवी, जिसके दृढ़ संकल्प और महती प्रेरणा से विश्व-विश्रुत, रूप- शिल्प और मूर्ति - विज्ञान की अद्वितीय कलाकृति को वीर सेनापति चामुण्डराय ने निर्मापित कराया। उस सौम्य, सुडौल, आकर्षक एवं भव्य मूर्ति को देखकर केवल जिनभक्त ही नहीं, सारा विश्व भी अभिभूत है तथा उसका दर्शन कर उसकी अतिशय भव्यता एवं सौन्दर्य पर आश्चर्यचकित रहा जाता है। इसे विश्व का आठवाँ आश्चय माना गया है। -257 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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