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32. चारुदत्त नाटक में मागधी प्राकृत का वैशिष्ट्य
प्राचीनतम नाट्यकार के रूप में सुविख्यात भास की अमर बारह नाट्य-कृतियाँ नाना प्राकृतों के प्रयोग के कारण आज भी विद्वानों में शोध - सामग्री प्रस्तुत करती दृष्टिगोचर होती हैं। इनमें प्राकृत भाषा के प्राचीनतम विभिन्न स्वरूप सुरक्षित हैं। प्रस्तुत निबन्ध में उन्हीं प्राकृत भाषाओं में से एक मागधी प्राकृत के प्राचीन स्वरूप को उद्घाटित करने का अल्प प्रयत्न प्रस्तुत है । चारुदत्त' तत्कालीन लोक-प्रचलित एक प्रकरण है, जिसमें ब्राह्मण से व्यापारी और धनी से निर्धन बने सज्जन चारुदत्त के प्रति धन-सम्पन्न एवं रूपवती एक गणिका वसंतसेना के अभिसार का हृदयग्राही वर्णन नाट्य विधा में अंकित है । विषय-वस्तु की दृष्टि से यह कृति किन्हीं कारणों से अपूर्ण है, तथापि मागधी प्राकृत की प्राचीनतम विशिष्टता निरूपण में पूर्णत: सहयोगी सिद्ध होती है।
भास का रचनाकाल सुस्पष्ट नहीं है, तथापि नाट्य-शास्त्र में भरतमुनि प्रणीत महाराष्ट्री प्रभावित प्राकृत की चार गाथाएँ भास को भरत से पूर्ववर्ती सिद्ध करती हैं। भरतमुनि का भी रचना - काल निर्विवाद नहीं है। सर्वप्रथम भरत ने ही मागधी को प्राकृत भाषा के एक द के रूप में उल्लेख करते हुए इसे राजाओं के अन्तःपुर में रहने वाले सेवक आदि लोगों की भाषा कहा है। ' भरत के पश्चात् वररुचि ने इसे मगध देश की व्यवहार में बोली जानेवाली भाषा बताया है। वररुचि से कुछ पूर्व वैयाकरण चण्ड ने इसे मागधिका उल्लेखित किया है और इसके लक्षण में 'र' के स्थान पर 'ल' और 'स' के स्थान पर 'श' का होना बताया है। "
वर्तमान में मगह क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिहार के पटना, गया और जहानाबाद जिले की जनबोली का नाम ही है, जो मागधी शब्द का ही विकसित रूप है। इसका क्षेत्र विस्तार सोन नदी के पूर्व गया से लेकर पटना तक है। ज्ञातव्य है कि प्राचीन मगध ही वर्तमान में मगह के नाम से माना जाता है और यही क्षेत्र बुद्ध का उपदेश स्थल भी रहा है। अतः असम्भव नहीं कि बुद्ध के प्रवचन इसी मागधी प्राकृत में उच्चरित हों। इस सम्बन्ध में निम्न गाथा सुप्रसिद्ध है -
- डॉ. सुदर्शन मिश्रा, जयपुर
सा मागधी मूलभाषा नरायायादिकप्पिका ।
ब्रह्मात्तो च चस्सुतालाषा संबुद्धा चापि भासरे ॥। १
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लंका में 'पालि' को ही मागधी कहते हैं । जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के उपदेश भी प्राकृत: में निबद्ध है, जो मागधी प्राकृत के ही अर्धांश से निर्मित मानी जाती है। इस प्रकार इस भाषा के प्राचीन स्वरूप का अपना एक अलग विशिष्ठ स्थान है ।
अर्धमागधी
मागधी प्राकृत का विस्तृत लक्षण व्यक्त करने वाले उपलब्ध वैयाकरणों में चण्ड के परवर्ती वररुचि सर्वप्रथम दृष्टिगत होते हैं, जिनके प्राकृत- प्रकाश नामक व्याकरण ग्रंथ के ग्यारहवें परिच्छेद में १७ सूत्रों के द्वारा मागधी
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