Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan

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Page 294
________________ झाणस्स पेरणा उवायं चेव झाणसाहणाई हवंति। झाणवण्णणपसंगे भारददेसस्स मंतविजा पगटिदा। जधा - पणतीससोलछप्पण चदुदुगमेगं च जवहज्झाएह । परमेट्ठिवाचयाणं अण्णं च गुरुवएसेण॥ -दव्वसंगहो, गाहा-४९ पणतीसक्खराणं सोलक्खराणं छक्खराणं पणक्खराणं चदुक्खराणं दुगक्खराणं एगक्खरस्स च विविहाई मंताई संति । एत्तो अइरिच्च णेगाइं मंताई होंति, ते सव्वाइं गुरुवएसेण पाइज्जइ। तत्थेव जेण्हदसणस्स विसिट्ठपदधारयाणं पच्चपरमेट्ठीणं लक्खणाई वट्टिरे। पंचपरमेट्ठिलक्खणे पंचगाहा संति। गाहाए कस्स वि वत्तिविसेसस्स णामं णत्थि। सामण्णदिट्ठीए सव्वत्थ गुणा लक्खिय वण्णणं विजइ। वत्युदो दव्यसंगहे आयरियस्स लक्खणं साहुलक्खणं च सव्वजणीणमत्थि। तं जधा - दसणणाणपहाणे वीरिमचारित्तवरतवायारे अप्पं परं च जुंजइ सो आयरिओ मुणी झेओ।। -दव्वसंगहो, गाहा-५२ दसणणाणपहाणेण वीरियचारित्ततवायारे सगं अण्णं च सुजुंजइ सो मुणी आयरियो णामं वुच्चदे। एवमेव साहुस्स लक्खणमवि उवजुत्तं दव्वसंगहे। जधा - दसणणासमग्गं मग्गं मोक्खस्स जो हु चारित्तं । साधयदि णिच्चसुद्धं साहू स मुणी णमो तस्स॥ -दव्वसंगहो, गाहा-५४ दसणणाणसहिदं जो मोक्खस्स मग्गं णिच्चसुद्धो भविय साधयदि सो मुणी साहू णामेण लोगे पूजिज्जइ। जधत्थं दुचारित्तं किं ? अस्स लक्खणं समीईणेण णेमिचंदायरिओ कहेइ दव्वसंगहे - असुहादो विणिवित्ती सुहे पवित्ती य जाण चारित्तं । वदसमिदिगुत्तिरूवं ववहारणया दु जिणभणियं ॥ -दव्वसंगहो, गाहा-४५ असुहकज्जेण विरत्तो हविय सुहकज्जे पवत्तणं णाम चारित्तं । एदम्मि चारित्तलक्खणे मुणिपव्यज्जा एव चारित्त अधवा सावगाणुवयं धारणं चारित्तं त्ति कधिअं किं दु पावपवत्तिए दूरो भविय पुण्णपवत्तिइ संलग्गदा खलु चारित्तं । चारित्तमेव जीवस्स उवयारयं, एरिसी परिभासा दव्यसंगहे विज्जदे। अग्गे उणो चारित्तस्स विसिट्ठा परिभासा वुच्चइ - बहिरमंतरकिरियारोहो भवकारणण्णासह । णाणिस्स जं जिणुत्तं तं परमं सम्मचारित्तं ।। -दव्वसंगहो, गाहा-४६ संसारकारणणासटुं णाणिस्स बहिरब्भंतराणं कियाणं णिरोहो परमं चारित्तं । अंतो बहि वा किं वि णो चलइ, भिसं संति तं खु चारित्तं। झाणस्स पेरणं कुणइ गंथकारो जं तुम्हे जणा झाणं समब्भसह जदो मुणी णियमेण मुत्तिं लहइ। तदणंतरं अप्पलयस्सोवायो वि वण्णइ - -- 252 - -252 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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