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धम्में विणु ण अत्थु सहिजइ तं असक्कु णिद्धम्मु ण जुजइ । अर्थात् धर्म के बिना अर्थ-धन की साधना नहीं हो सकती। अतः आसक्त होकर धर्म किये बिना कोई योजना नहीं करनी चाहिये।
___ कवि की यह प्रश्नोत्तरी-शैली सम्राट अशोक के प्रथम स्तम्भलेख तथा आचार्य सिद्धसेन-दिवाकर की धर्म विषयक प्रश्नोत्तरी-शैली का स्मरण दिलाती है। वस्तुतः वर्णन-शैली का वैशिष्ट्य यही है कि पाण्डित्य-प्रदर्शन किये बिना भी गूढ-विषय को इस पद्धति से वर्णित किया जाया, जिसे अल्पमति वाला भी सहजता से समझ सके। पुष्पदन्त ने यही किया है। युद्ध का निषेध नहीं -
घोर अहिंसावादी महाकवि पुष्पदन्त ने श्रावकों को युद्ध करने का निषेध कभी नहीं किया, वशर्ते कि वह माँ-बेटी -बहिनों के शील की सुरक्षा, देश की आतताइयों से सुरक्षा एवं दीन, अनाथों की सुरक्षा के निमित्त किया गया हो। कवि कहता है -
रणु चंगउ दीणपरिग्गहेण सयंणत्तकुसजणगुणगहेण ।
पोरिसु सरणागय सक्खणेण दुक्ख वि चंगउ सुतवें कएण । छन्द-प्रयोग
तिसट्ठि महापुराण में विभिन्न छंदों के प्रसंगानुकूल प्रयोग किये गये हैं। छन्द की इकाई कडवक है, जिनमें अपूर्व संगीत एवं लय समन्वित है। प्रत्येक कडवक में प्रत्येक पंक्ति के दो चरणों को पूर्ण छन्द मानकर प्रयोग किया गया है। सन्धि के प्रारम्भ में प्रायः सर्वत्र एक धुवक का प्रयोग मिलता है, जो दुवई या घत्ता चन्द में मिलता है। इस धुवक में सन्धि में प्रासंगिक कथा का सूत्र संकेत रहता है।
अन्त्यनुपास का प्रयोग सभी कड़वक-छंदों में नियम से मिलता है। चाहे वे मात्रिक-छन्द हो अथवा वर्णिक-छंद। सबसे लघु छन्द पाँच मात्राओं का मिलता है (तथा-सन्धि ५६/९)। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने छन्दोनुशासन नामक ग्रन्थ में इसे रेवका-द्विपदी के नाम से अभिहित किया है।
सबसे दीर्घ चन्द दंडक है, जिसका प्रत्येक चरण ८८ मात्राओं का होता है। यथा - ८९/५/११
तिसट्टिमहापुराण में अधिकांश छंद मात्रिक हैं तथा वे संगीत एवं लय से युक्त हैं। महाकवि ने एकाधिक स्थल पर उसके प्रति अपना आकर्षण भी व्यक्त किया है। तथा - कइ कव्वु व कयमत्तापमाणु - ७३/२९
पुष्पदन्त ने प्रस्तुत रचना में सामान्य वर्णन करने तथा कथा-कथन के लिये पज्झटिका या अन्य चतुष्पदी वाले छन्दों के प्रयोग किये हैं। युद्ध-प्रसंगों तथा वर्षा-प्रसंगों में उसने भिन्न-भिन्न प्रकार के छन्दों के प्रयोग कर वर्ण्य-विषय का सजीव चित्रण करने का प्रयत्न किया है।
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