Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
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टिविला-टिविली (=एक वाद्ययन्त्र)-४/११/३, १७/३/५ (वर्तमान-कालीन चर्माच्छादित वाद्यविशेष-तबला के समान एक वाद्य-विशेष-) यह शब्द अरबी-भाषा का प्रतीत होता है, जिसमें उसे 'तब्ला' कहा जाता है, जो संगीत को सुमधुर बनाने तथा गायक को बीच-बीच में विश्राम देने के लिए बजाया जाता है।
पीलु (=हाथी)- २/१८/३, ४/४/११, ९/४/२, ९/२५/१२, आदि यह शब्द सम्भवतः अरबी एवं फारसी के पील शब्द से आयातित है। उर्दू में इसे पीलू कहते है जिसका अर्थ हाथी होता है। यह शब्द समराइच्चकहा (८वीं सदी) तथा यशस्तिलकचम्पू (सोमदेवसूरि, १०वीं सदी) में भी इसी अर्थ में प्रयुक्त है। पीलुवाल (गजेन्द्र, ऐरावत) १४/८/३ सम्भावतः यह शब्द भी अरबी-फारसी से आयाजित है।
द्राविडीशब्दों में हुडक्क (वाद्य-विशेष) ३/१०/४, सोणरी (श्रृगालिनी) २०/२१/१ टंडा (पार्टी, सम्मेलन) १४/२२/८, तथा - कन्नड-शब्दों में कुडुव (=नगाडा बजाने वाली लकड़ी) ४/१०, अक्का (=माता) अक्के (बड़ी बहिन) १६/२५/१२, अद्दा (आदर्श दर्पण) ९०/३/१४, अम्मा (माता, वृद्ध-महिला), ६९/२७/१ जैसे शब्दों के प्रयोग मिलते है।
तिसट्टिमहा. में कुछ शब्दावली तो ऐसी प्रयुक्त है, जो आज भी थोड़े से स्थानीय प्रभाव के साथ सामान्य जनता के द्वारा दैनिक कार्यों में प्रयुक्त है। यथा - साड़ी = (साड़ी, शाटिका)-१२/५/३
चुक्क = (चूकना) ४/८/५ तोंद = (बड़ा पेट) - २०/२३/३ झंप = (झंपी लेना, अर्धनिद्रा) १२/१२/५ ढंक = (ढंकना) - १/१३/१०
डंकिय = (डंकमारना, काटना) ३०/१२/८ रहट = (रहँट, अरहट-जलयन्त्र) २७/१/४ भल्ल = (भला, भद्र) ४/५/७ हट्ट = (हाट-बजार) १/१६/१
चड = (चढना) २/१६/१७ लुक्क = (लुका-छिपी, छिपना) ९/१४/१२ । डोल्ल = (डोलना) ४/१८/२, १५/१८/३ ढिल्ल = (ढीला, शिथिल) ३२/३/५ बुड्ड = (बूडना ) २/१९/४ भिडिअ = (भिड़ जाना, जा टकराना) १७/१/१ गिल्ल = (गीला, भींगा) ३३/११/११ भुक्क = (भौंकना, चिल्लाना) १/८/७ छिक्क = (छींक) २६/४/२ डर = (डर, भय) २५/८/९
जोक्ख = (जोखना, तौलना) ४/५/५ चंग = (चंगा, अच्छा) ९/४/१४ जेवइ = (जीमना, भोजन करना) १८/७/११ डाल = (डाल, शाखा) १/१८/२ . पाहुण = (पाहुना, अतिथि) २४/१०/७ बोल्ल = (बोलना) ८/५/१७
आदि-आदि
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