Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
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लोक - विश्वास
समाज में अन्ध-विश्वासों की कमी नहीं थी । उसमें भी ज्योतिष का बड़ा महत्व था । विशेष रूप से शनिदेवता के प्रभाव का। उसके दोष से बचाव के लिये लोग अनेक उपाय किया करते थे। राजाओं के यहाँ ज्योतिषियों का विशेष महत्व होता था । वे उनके लिये स्वप्न फल कथन (तिसट्ठि. ९/३८१३-४७), कार्यारम्भ के लिए शुभमुहुर्त कथन तथा भविष्यवाणी - कथन का कार्य किया करते थे। (वही ८५/१८/८-१०) इच्छित वरदान-प्राप्ति हेतु कापालिक देवी कात्यायिनी की तुष्टि हेतु मनुष्यों एवं पशुओं की बलि भी दी जाती थी (जस. १/७/८-१० ) ।
महाकवि पुष्पदन्त भले ही सर्वसाधन सम्पन्न शुभतुंग-भवन में रहकर अपना साहित्य-प्रणयन करते रहे, फिर भी वे अपने प्रारम्भिक अभावग्रस्त जीवन के कष्टों को भुला न सके थे। अतः ग्रन्थान्त में उन्होंने पुनः अपने उन कष्टों का श्रृंखला-बद्ध वर्णन कर अन्त में पुनः लिखा- 'अब मैं महामात्य - भरत के आश्रय में रहा हूँ और मैं अभिमानमेरु, काव्यपिशाच- कविकुलतिलक विरुद्धारी पुष्पदन्त अपने साहित्य-सृजन सम्बन्धी कार्य से सभी को पुलकित कर रहा हूँ।' (तिसट्ठिमहा. अन्त्य प्रशस्ति)
विश्व में महाकवि तो अनेक हुए हैं और उन्हें यश भी मिला है। उन पर विश्वव्यापी शोध कार्य तथा विविध भाषाओं में उनके अनुवाद भी हुए हैं। विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी उन्हें स्थान मिला इसीलिये वे लोकप्रिय एवं विश्व प्रसिद्ध हो सके। इसके विपरीत महाकवि पुष्पदन्त के साहित्य पर शोधकार्य नगण्य ही हुआ है। श्विस्तर के साहित्य के साथ उसके तुलनात्मक अध्ययन की ओर भी किसी का ध्यान नहीं गया तथा विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी उसे सन्तोष जनक स्थान नहीं मिला। यही कारण है कि श्रेण्य-कोटि का यह पुष्पदन्तसाहित्य लोकप्रिय नहीं हो सका और इस रूप में प्राच्य भारतीय विद्या का यह गौरवपूर्ण साहित्य तथा राष्ट्रकूटकालीन साहित्य, संस्कृति एवं इतिहास का महान् संरक्षक यह महाकवि पुष्पदन्त भी विश्व-विख्यात न हो सका। इसका दोष किसे दिया जाय ?
भारतीय विश्वविद्यालयों मे शेक्सपीयर, कीट्स, वायरन, वर्ड्सवर्थ आदि महा - कवियों का अध्ययन तो कराया जाता है, किन्तु स्वयम्भू, पुष्पदन्त, वीर, धवल, धनपाल जैसे महामहिम कवियों का अध्ययन नहीं कराया जाता। वस्तुतः यह प्राच्य भारतीय विद्या की महान् क्षति है, जो अत्यन्त दुर्भाग्य पूर्ण है।
महाकवि पुष्पदन्त भारतीय विद्या के प्रमुख अंग - अपभ्रंश भाषा और साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं। उनका तिसट्ठिमहापुराण ज्ञान - विज्ञान एवं मनोविज्ञान का अपूर्व विश्वकोश है। उसकी गुणवत्ता हर कसौटी पर खरी उतरी है। अतः महाकवि पुष्पदन्त का आत्म-विश्वास - समन्वित यह कथन निस्सन्देह ही सार्थक सिद्ध होता है
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. किं चान्यद्यदिहास्ति जैन - चरिते नान्यत्र तद्धिघते
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