Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan

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Page 269
________________ कोई भी बात अच्छी नहीं लगती। यथा विसुणे किं अब्भत्थिएण जसु को वि ण रुच्चइ । किं छणचन्दु महागहेण कम्पन्तु वि मुच्चइ ॥-प.च. १.३ पउमचरिउ की कथावस्तु पउमचरिउ की कथावस्तु को कवि ने काण्डों में विभक्त किया है। कथावस्तु को काण्डों में विभाजित करने में इन्होंने महाकवि वाल्मीकि का अनुसरण किया है। इसमें पाँच काण्ड हैं - विद्याधर काण्ड, अयोध्या काण्ड, सुन्दर काण्ड, युद्ध काण्ड और उत्तर काण्ड। विद्याधरकाण्ड- विद्याधर काण्ड में वर्णित इन्द्र, बालि और रावण क्रमशः विद्याधर वंश, वानर वंश तथा राक्षस वंश के प्रतिनिधि रहे हैं। भरत एवं बाहुबलि ने इक्षवाकु वंश का प्रतिनिधित्व किया है। इनमें प्रारंभ की चार संधियों में इक्ष्वाकुवंशी ऋषभ और उनके पुत्र भरत तथा बाहुबलि की कथा है। भरत और बाहुबलि के युद्ध का कथन भी इसमें किया गया है। शेष सोलह संधियों में एक ही वंश से उद्भूत विद्याधर, वानर और राक्षसवंश की परस्पर ईर्ष्या, प्रीति, प्रतियोगिता और युद्धों का कथन मिलता है। स्वयंभू कवि ने इसमें यह भी बताया है कि इनमें ये तीन वंश - विद्याधर, राक्षस एवं वानर परस्पर चाहे कितना ही लड़े हों और इनमें कितना ही वैमनस्य रहा हो किन्तु इक्ष्वाकुवंश का इनसे किसी भी बात को लेकर आमना-सामना नहीं हुआ, बल्कि इन तीनों का इस वंश से आदरसम्मान का भाव ही रहा है। अयोध्या काण्ड - अयोध्या कांड की प्रारम्भिक तीन संधियाँ श्री राम के विवाह एवं वनवास से सम्बन्धित हैं। इसके बाद २४ से ३५ तक की संधियों में राम-लक्ष्मण के शौर्य, पराक्रम, शरणागत-रक्षा तथा जिनधर्म के सिद्धान्तों से सम्बन्धित अवान्तर कथाएँ हैं। सुन्दर काण्ड - यह हनुमान की विजयों का काण्ड है। मन्दोदरी, सीता व रावण के परस्पर वार्तालाप से सुन्दरकाण्ड की सुन्दरता बढ़ गई हैं। यहाँ कवि की स्वतन्त्र उद्भावना का बहुत ही मौलिक चित्रण हुआ है। युद्ध काण्ड - युद्ध काण्ड का आरम्भ विभीषण का रावण को त्यागकर राम के दल में मिलने की घटना से होता है। युद्ध काण्ड का मुख्य काव्यात्मक आकर्षण ६२वीं संधि में है। इसमें रावण गुप्त रूप से रात्रि में लंका नगर मे घूमकर अपने योद्धाओं की रमणियों का वार्तालाप सुनता है जिसमें उनकी सम्मोहक चेष्टाओं के बीच रोमांचकारी उक्तियाँ संजोयी गयी हैं। यह श्रृंगार और वीर रस के संयोग का दुर्लभ उदाहरण है। स्वयंभू कवि ने युद्ध काण्ड में वीर, श्रृंगार, करुण एवं शान्त रस के रूप में एक साथ चार रसों का सफलतापूर्वक समावेश कर अद्भुत काव्यत्व प्रदर्शित किया है। -227 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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