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यह मानव समाज, जो पृथग्जनों तथा कल्याणपृथग्जनों से व्याप्त है, उसमें आर्यता का संचार करना बौद्ध साधना का उद्देश्य है। यह बौद्ध आर्यता वैदिक आर्यता से भिन्न रही है। यज्ञों के द्वारा आर्यता प्राप्त करना वैदिक मार्ग था तथा इस मार्ग में पशुबलि बहुत आवश्यक वस्तु थी। पशुओं में अश्व, गो, अवि (मेष) तथा अज (बकरे) नहीं, परुष का भी समावेश रहता था। यह आर्यता तथागत को मान्य न थी । उन्होंने स्पष्ट कहा है.
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न तेन अरियो होति येन पाणानि हिंसति । अहिंसा सब्बपाणानं अरियो ति पचति ॥
- धम्मपद २७०
प्राणियों की जिस (भाव) से (आदमी) हिंसा करता है, उससे कोई आर्य नहीं होता । सब प्राणियों की हिंसा न करना ही एक (ऐसा भाव) है, जिससे कोई आर्य होता है। यह आर्यता क्या है ? यह आर्यता बन्धन से मुक्ति का नाम है -" इयर्ति स्वच्छन्दं गच्छति इति आर्यः” इस निर्वचन के अनुसार वह आर्य होता है, जो बन्धन हीन है, जो दास नहीं है। वह श्रेष्ठ है। जिन बन्धनों में बन्धकर मनुष्य आर्यभाव को खो देता है तथा दासभाव में फंस जाता है, उस बन्धनों का छिन्न भिन्न करने का मार्ग दिखाना तथागत का काम था । जो आर्यता के प्रवाह में बहने लगता है, उसकी प्रशंसा करते हुए तथागत ने कहा है -
पथव्या एकरज्जेन सग्गस्स समनेन वा ।
सब्बलोकाधिपच्चन सोतापत्तिफलं वरं । - धम्मपद १७८
पृथ्वी के सम्पूर्ण राज्य से अथवा स्वर्ग के आरोहण से अथवा सब लोकों के ऊपर स्थापित प्रभुत्व से स्रोत में -आर्यता के प्रवाह में पहुँचने का फल श्रेष्ठ होता है । बन्धन में बन्ध व्यक्ति आर्यता के प्रवाह तक पहुँच नहीं सकता। बन्धन अनेक हैं। अहंता तथा ममता का बन्धन बहुत ही कठिन है । तथागत ने स्वयं कहा है
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न तं दहं बन्धनमाहु धीरा यदायसं दारुजं बब्बजं च । सारत्तरत्ता मणिकुंडलेसु पुत्रेसु दारेसु च या अपेक्खा ।
एतं दल्हं बन्धनमाहु धीरा ओहारिनं सिथिलं दुप्पमुं च ॥
धम्मपद ३४५, ३४६
'बुद्धिमान लोग उस बन्धन को कठिन नहीं मानते, जो लोहे का, लकड़ी का एवं तृण का बना होता है। पर रत्नों में जो परम अनुराग होता है तथा जो पुत्रों एवं भार्याओं में आसक्ति होती है, इसे बुद्धिमान लोग कठिन बन्धन मानते हैं। वह यदि ढीला ढाला हो तो भी नीचे की ओर खींच ले जाता है, उससे अपने को छुड़ा पाना एक बहुत कठिन काम है।” इसके साथ काय की ममता तो सबको रहती ही है । यद्यपि सब लोग जानते हैं कि
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अचिरं वतयं कायो पठविं अधिसेस्सति ।
छुद्धो अपेतविञ्जाणो निरत्थं व कलिङ्गरं ।
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धम्मपद ४१
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