Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
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नन्दिराग आदि पर्यायवाची शब्द हैं। यह सब नष्ट करके संस्कृत गाथा के अनुसार आदमी शुद्ध कहलाने लगा है। पालि में ब्राह्मण (अर्हत्) यह सब कर चुकने पर दुःख रहित होकर विचरता है। अट्ठकथानुसार 'अनीघो निददुःखो' है।
धम्मपद की जो दूसरी गाथा इस प्रसंग में आई है, उसमें व्याघ्रपंचम के घात की बात आई है। (वेय्यग्घपंचमं हन्त्वा) शब्दार्थ यों हैं, व्याघ्र जिनमें पाँचवाँ है, ऐसे नीवरणों को नष्ट कर। नीवरणों को जिस क्रम से गिना जाता है, उसमें पाँचवाँ नीवरण विचिकित्सा है। अभिप्राय यह है कि पाँचवाँ नीवरण (अवरोध-तत्त्व hindrance) जिनमें विचिकित्सा है, उस नीवरण समूह को नष्ट करके, अनीघो याति ब्राह्मणो, ब्राह्मण दुःख रहित होकर विचरण करता है। नीवरण ये हैं- १. कामच्छन्द नीवरण, २. व्यापाद नीवरण, ३. स्त्यानमिद्ध नीवरण, (थीनमिद्ध नीवरण) ४.
औद्धत्य-कौकृत्य नीवरण, (उद्दच्च-कुक्कुच्च नीवरण) ५. विचिकित्सा नीवरण, (विचिकिच्छा नीवरण, इसी को गाथा में व्याघ्र कहा गया है ) ६. अविद्या नीवरण (अविज्जा नीवरण)
इस प्रकार के गूढार्थों की व्याख्या करना व्याकरण है।
बोधिसत्त्व होकर बुद्धत्त्व तक पहुँचना भी साधना मार्ग का लक्ष्य था। अर्हत् एक क्षेत्र में एक समय बहुत हो सकते है। पर बुद्ध एक क्षेत्र में एक समय एक ही होते हैं
संदर्भ - १. मिलिन्दपजहो, अनुपिटक साहित्य का बुद्धवचन के समान मान्य ग्रंथ।
पालि साहित्य का इतिहास, भरतसिंह उपाध्याय, पृष्ठ-८, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रकाशन, इलाहाबाद ३. गाथा-वृद्धि के उदाहरणों और उनके कारणों के अधिक विस्तृत विवेचन के लिये देखिए बडुआ और मित्र प्राकृत धम्मपद , पृष्ठ-३१,
(भूमिका ?) डॉ.विमलाचरण लाहा ने 'हिस्टी ऑफ पालि लिटरेचर ' जिल्द पहली, पृष्ठ २००-२१४ के अनेक पद-संकेतों में उपनिषद, महाभारत, गीता, मनुस्मृति आदि ग्रंथों से उद्धरण देकर धम्मपद की गाथाओं से उनकी समानता दिखाई है। इस विषय का अधिक तुलनात्मक अध्ययन भी
किया जा सकता है।) ५. बौद्धसिद्धान्त विमर्श, शान्ति भिक्षु शास्त्री, प्रका.बौद्ध अध्ययन विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
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