Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
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तिसट्टिमहापुराण में वार्णिक-वत्तों की भी कमी नहीं किन्तु इनमें विशेष नवीनता दिखाई नहीं पड़ती। इस प्रयोग में अन्त्यनुप्रास का ध्यान रखा गया है। गणों के निश्चित क्रम में कुछ परिवर्तन नहीं मिलता । इन वृत्तों के प्रयोग के रुप में पुष्पदन्त ने संस्कृत की छंदशैली को अपनाया है। किन्तु यहाँ यह ध्यातव्य है कि प्रस्तुत रचना में वर्णवृत्तों की अधिकता है। पद्धडिया-शैली में जो वर्णवृत्त मिल सकते थे, उनको ही पुष्पदन्त ने अपनाया है। इसीलिये एक-गण के छन्दों का कहीं प्रयोग नहीं मिलता। दो-गण तथा तीन-गण के छन्दों का प्रयोग भी कम मिलता है। चार-गण के समचतुष्पदी-छन्दों का प्रयोग द्विपदी के समान हुआ है। अलंकार-विधान
लक्षण-शास्त्रियों के अनुसार कवि अपने-अपने काव्य के रसों और भावों के उत्कर्ष की अभिवृद्धि के लिए विभिन्न प्रासंगिक अलंकारों के प्रयोग करते हैं। रससिद्ध कवि कहीं तो किसी भाव अथवा दृश्य का सादृश्य दिखलाने के लिये, तो कहीं किसी गुण-विशेष को संवेदनीय बनाने के लिये, कहीं सम्भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिये और कहीं चमत्कार की सृष्टि करने, साथ ही अपना पाण्डित्य प्रदर्शन करने हेतु भी विभिन्न अलंकारों के प्रयोग करते हैं। महाकवि पुष्पदन्त ने प्रस्तुत रचना में विभिन्नि प्रसंगों में विभिन्न अलंकारों के प्रयोगों में अपनी काव्य-प्रतिभा का चमत्कार तो प्रदर्शित किया ही, साथ ही अलंकृत काव्य-लेखक को ही सुकवि एवं अलंकारविहीन काव्य-लेखक को कुकवि की संज्ञा तक प्रदान कर डाली। एक दूसरे स्थल पर महाकवि ने कहा है कि सुकवि का काव्य-विवेक अलंकारों की कान्ति से युक्त होता है। यथा -
सालंकारु कंतिइ साहिउ कव्व-विवेउ णा' पर कइयाणि । - (तिसट्टिमहा. ६८/५/१३) जहाँ तक अर्थालंकारों का प्रश्न है पुष्पदन्त -साहित्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि पुष्पदन्त को सादृश्यमूलक-अलंकार सर्वाधिक प्रिय हैं। अनेक स्थलों पर कवि-परम्परा द्वारा प्रयुक्त अप्रस्तुतों के अतिरिक्त उसने (पुष्पदन्त ने) नवीन अप्रस्तुतों का भी प्रयोग किया है। यह तथ्य निम्न उदाहरणों से स्पष्ट है :
तं णरणाहे वयणु समत्थिउ खिच्चउ उप्परि घिउ ओमत्थिउ । अर्थात् राजा (बज्रजंघ) ने उसके (बज्रवाहु के) कथन का समर्थन (२४/११) इस प्रकार किया, मानों खिचड़ी के ऊपर घी डाल दिया गया हो। इसी प्रकार एक अन्य प्रसंग में पुष्पदन्त ने यमुना नदी एवं वृद्धावस्था की झुरियों का सादृश्य इस प्रकार व्यक्त किया है।
महि मय -णाहि रइयरेहा इव बहुतरंग जर-हय-देहा इव । (२५/२) अर्थात् यमुना नदी पृथ्वि पर मृग-नाभि-कस्तूरी की रेखा के सदृश है और उसकी अनेक तरंगें वृद्धावस्था की झुर्रियों के सदृश है। यौवन एवं पके फल की सादृश्यता का प्रदर्शन देखिये -
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