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महाकवि की जन्मस्थली
यह आश्चर्य का विषय है कि पुष्पदन्त ने अपने आश्रयदाताओं, समकालीन शासक तथा अन्य विषयों की चर्चा तो की किन्तु अपनी जन्म-स्थली के विषय में कोई स्पष्ट संकेत तक नही दिया। पुष्पदन्त साहित्य में क्वचितकदाचित् प्रयुक्त समकालीन मराठी तथा कन्नड़ शब्दों को देखकर कुछ विद्वान् पुष्पदन्त को महाराष्ट्र अथवा कर्नाटक-प्रदेश का निवासी होने का अनुमान करते हैं। सुप्रसिद्ध इतिहासकार पं. नाथूराम प्रेमी के अनुसार पुष्पदन्त प्राचीन बरार (विदर्भ) के निवासी रहे होंगे, जो कि मराठी-बोली का प्रसिद्ध जनपद् माना जाता रहा है। पुष्पदन्तसाहित्य के विशेषज्ञ डॉ. पी.एल. वैद्या (पूना) तथा प्रो. हीरालाल जैन ने प्रेमी जी के उक्त कथन को मान्यता प्रदान की है। इससे यह विदित होता है कि महाकवि पुष्पदन्त रोहणखेड (विदर्भ, महाराष्ट्र) के निवासी थे।
आश्रयदाता
महामात्य भरत की विनम्रता एवं अनन्य स्नेहादर ने पुष्पदन्त के क्रोधी एवं अहंकारी स्वभाव के लिये तीक्ष्ण अंकुश का कार्य किया। यही कारण है कि उनके निवेदन पर कवि ने अपने ग्रन्थ-प्रणयन का कार्य प्रारम्भ किया। महाकवि पुष्पदन्त ने तिसट्ठिमहा. की आद्य-प्रशस्ति (१/३) में मेलपाटी (मान्यखेट) नगर के वीर पराक्रमी राजा तुडिग की चर्चा कर उसके महामात्य भरत के पराक्रमी होने तथा उसके सद्गुणों की चर्चा की है। उन्हीं के आश्रय में रहते हुए तथा उन्ही की प्रेरणा से कवि ने तिसट्ठि महा. तथा जसहरचरिउ की रचना की थी। भरत का पुत्र नन्न भी अपने पिता के समान ही सुसंस्कृत विद्याव्यसनी एवं कवियों के प्रति आदर-भाव रखने वाला था। भरत की मृत्यु के बाद वह तुडिग-नरेश का गृहमन्त्री भी था। उसकी प्रेरणा से पुष्पदन्त ने णायकुमार-चरिउ की रचना की थी। नन्न की उदारता, विनम्रता एवं स्नेहादर से पुष्पदन्त इतने प्रभावित थे कि उन्होंने लिखा है कि - ‘नन्न जैसा विश्व में अन्य दूसरा सज्जन व्यक्ति नहीं मिल सकता।' यथा - णण्णु जि अण्णु ण (णाय.१/३/१३) नन्न की साहित्यरसिकता से प्रभावित होकर पुष्पदन्त ने अपने जसहरचरिउ को नन्न का कर्णाभरण (कर्ण का कुण्डल) कहा है। तथा - णण्ण-कण्णाहरण (णाय. १.४ पुष्पिका) अध्ययनशीलता एवं विनम्रता
___पुष्पदन्त के सन्निकट-पूर्ववर्ती छक्खंडागम एवं कसायपाहुड-सुत्तों पर धवल एवं जयधवला (महाधवला टीका का उल्लेख नहीं) टीकाओं के टीकाकार वीरसेन स्वामी, उनके पट्टशिष्य तथा जैन-पुराण-साहित्य के आद्यग्रन्थकार महाकवि जिनसेन एवं गुणभद्र हुए, जिनके ग्रन्थों का अद्यययन करने का सुअवसर महाकवि पुष्पदन्त को मिला था। इसके संकेत पुष्पदन्त ने तिसट्ठिमहापुराण की आद्य-प्रशस्ति में दिये हैं।
महाकवि पुष्पदन्त ने अपनी ग्रन्थ-प्रशस्तियों में आत्म-परिचय के प्रसंगों में अपने को अल्पज्ञ, मन्दमति एवं गुरु-वाणी-विहीन कहा है। वस्तुतः यह उनकी सरस्वती-देवी के प्रति अनन्य-भक्ति एवं विनम्रता, पूर्ववर्ती
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