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प्राकृत भाषा एक दृढ सेतु :
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्राकृत भाषा ने संस्कृत और अपभ्रंश तथा संस्कृत और आधुनिक भारतीय भाषाओं के बीच दृढ सेतु का कार्य करती रही है। इसके साथ ही देशज शब्दों का जो अपूर्व भण्डार प्राकृत ने सँजो कर रखा है, वह भारतीय भाषा परम्परा की दुर्लभ कडी है। प्राकृत के अध्ययन के बिना भारतीय भाषाविज्ञान और भाषा परम्परा का कोई भी अध्ययन अपूर्ण ही कहा जायेगा। वास्तव में संस्कृत का पाण्डित्य प्राकृत भाषा और उसके साहित्य के ज्ञान के बिना अधूरा है। पर यह भी उतना ही सत्य है कि प्राकृत का सम्यक ज्ञान और प्राकृत भाषा तथा साहित्य पर अधिकार के लिए संस्कृत का सम्यक् ज्ञान नितान्त आवश्यक है।
परमपूज्य स्वस्तिश्री चारूकीर्ति भट्टारक स्वामी जी के मार्गदर्शन में बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ द्वारा संचालित राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान प्राकृत-संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के शिक्षण और शोधकार्य में प्रवृत्त हैं , इसका लाभ भारतीय भाषाओं के विकास को मिलेगा। इससे उत्तर और दक्षिण की सारस्वत परम्परा में संवाद बनेगा। इस संस्थान ने प्राकृत और कन्नड भाषा के साहित्य को प्रकाश में लाने का प्रयास भी किया है, ताडपत्रीय पाण्डुलिपियों की सुरक्षा और खोज में विद्वानो को लगाया है, इससे भारतीय साहित्य की धरोहर सुरक्षित हो रही है।
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