Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
जब भ. अजितनाथ स्वामी विचरते थे, तब इस भरत क्षेत्र के 'राक्षस द्वीप' में लंका नाम की नगरी थी। उसमें राक्षसवंशीय राजा धनवाहन राज करता था। उस भव्यात्मा नरेश ने विरक्त हो कर अपने पुत्र महाराक्षस को राज्य देकर भ. अजितनाथजी के पास निग्रंथ-प्रव्रज्या स्वीकार करली और विशुद्ध साधना करके मोक्ष प्राप्त कर लिया। उसका पुत्र महाराक्षस भी कालान्तर में संयमी बन कर मोक्ष गया। इस प्रकार राक्षस द्वीप के असंख्य अधिपति हो गए।
. भ. श्रेयांसनाथ स्वामी के तीर्थ में 'कीतिधवल' नाम का राक्षसाधिपति हुआ। उसी समय वैताढ्य पर्वत पर मेघपुर नगर में अतीन्द्र नाम का विद्याधर राजा था। उसके 'श्रीकंठ' नाम का पुत्र और 'देवी' नामकी पुत्री थी । रत्नपुर के पुष्पोत्तर नामक विद्याधर राजा ने अपने पुत्र पद्मोत्तर के लिए अतीन्द्र नरेश से राजकुमारी देवी की याचना की। किंतु उन्होंने इस याचना की उपेक्षा करके, राजकुमारी के लग्न, कीर्तिधवल नरेश से कर दिये । यह समाचार सुन कर पुष्पोत्तर नरेश कुपित हुए और अतीन्द्र नरेश तथा राजकुमार श्रीकंठ से वैर रखने लगे। एक बार राजकुमार श्रीकंठ, मेरु पर्वत से लौट कर आ रहा था कि वन-विहार करती हुई पुष्पोत्तर नरेश की पुत्री कुमारी पद्मा, राजकुमार श्रीकठ को दिखाई दी। उसके अनुपम रूप-लावण्य को देख कर वह मोहित हो गया। राजकुमारी भी राजकुमार को देख कर मोहित एवं आसक्त हो गई । वह बार-बार राजकुमार की ओर देख कर पुलकित होने लगी। राजकुमार श्रीकंठ समझ गया कि---'यह सुन्दरी मुझ पर अनुरक्त है। उसका अभिप्राय जान कर श्रीकंठ ने उसे ग्रहण किया और आकाश-मार्ग से चलता बना । राजकुमारी का हरण होता हुआ देख कर उसकी सखियाँ और दासियाँ चिल्लाई और कोलाहल करने लगी । कोलाहल सुन कर पुष्पोत्तर नरेश सेना ले कर श्रीकंठ का पीछा करने लगे। श्रीकंठ, पद्मा को ले कर अपने बहनोई श्री कीर्तिधवल नरेश के पास पहुँचा और पद्मा सम्बन्धी घटना सुनाई । इतने में पुष्पोत्तर राजा सैन्य सहित वहां आ गया। कीर्तिधवल नरेश ने पुष्पोत्तर नरेश के पास अपना दूत भेज कर कहलाया कि--"आप अकारण ही क्रुद्ध हुए और युद्ध करने को तत्पर हुए हैं। राजकुमारी श्रीकंठ के साथ अपनी इच्छा से ही आई है , श्रीकंठ ने उसका हरण नहीं किया। आप अपनी पुत्री का अभिप्राय जान लीजिए और उसकी इच्छा के अनुसार उसके लग्न श्रीकंठ के साथ कर दीजिए।"
राजकुमारी पद्मा ने भी एक दासी द्वारा पिता को ऐसा ही सन्देश भेजा । पुष्पोत्तर ने वास्तविकता समझी। उसका कोप शान्त हो गया और उसने वहीं अपनी पुत्री के लग्न श्रीकंठ के साथ करके राजधानी में लौट गया।
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