Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ ( १० ) १मा रिछाहिर दृशविघरे, वसीसामा न्यारी । यौमासा डीपर रे, गुश्जलिग्रहधा॥१॥पांतर नवेरे, जे हरिउंहरीयों अहिजिस धूमिल होरे, वेश्याभंहिरीयें। १९॥गुश्माएा विहारी रे, पातज्डां घोवे॥ शुलवीर विवेडीरे, वेश्या वाट मेवे ॥१॥ ढाल छठ्ठी ॥ साहेलीरे, यिनीने प्यासारे, तारा नसें लक्ष्यां ।। खेहेशी ॥ हो सन नीरे, प्रीतमन्छ प्यारोरे, हलय न जावीयो होसननीरे॥ यातुररे नर जजर न अर्ध सावियो । होगा यात्यारे मुळ उरी, अवधि घडीयारनी होगा सुजीयो ते शुं ब्लऐवेघ्न नारनी ॥ १॥ होगा खेड विरह दुःज जी लुं घननस गडगडे । होगा हु: जीयानाशि र डीपर दुःख जावी पडेगा होना पावसभा सें नस वरसे घनघोरीयो पाहोना माहरेरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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