Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 87
________________ ( ८६ ) हे रथ वाल्यो हो शामलीया, शुंन्नेछ खाव्या न्नेस हुरज सहुरास्यो खांडली तुमे हराने उहे शुं लागा, हुए| पती खावे पेहेरे वागा, ते जागा सहुथी ने नागा । तभेव आशा खेो यंहङसंडी डीघो छे, सीताने वियोन गते हीघो छे. मे नाम दुरंग प्रसिध्धो छेगा मेणाशा ते भारे पाछा इरी खावो, शुंयाध्व कुलभां शरभावो, शुंयुग युगडेहेवत उहेवरावो ॥ तुभे गाउ ॥ तुमे विरह तो जाएो छे द्या. राणी राब्नुसना हीया लेद्या, तुमे समृ त सुजा नवि वेद्या ।। तुमेगाभा २४. ॥ हूंतो लूसी गर्छ, शुध्ध बुध्ध सरखे शान थर्ध जेहाली । हुतो पहेली धर्ध, भुने घरमा नथी गमतुं माहारा वासा ॥ खेखांड एली। रजा मंदिर जावा धारणे छे, भुने वरस स भो हिन थाखे छे, लुग सरजी रयसी लग्जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainbrary.org

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