Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ ( ८८ ) उरतां तत्त्वदृशा सावी, उहे मृत पायुपासें जा वीरेणाभा २९ प्रभु हीतअरी, संयम जापी थापी शिवप हनारी, नहीं जसिहारी नवमें लवें निनरानें पहिला तारी ॥ खेखांउली ।। सहसावन सघसी ऋधि लेडी, शिव पोहोता उरम लरभ त्रोडी, नेमी रानुस जवियस धर्म लेडी ॥ प्रभुवाणा भसी गोपी संवाह सुणाच्यो छे, श्रीनेमि विवाह मनाव्योछे, धन हांते अधिडार जनाव्यो छे । लुना शाडीखो ग्जढारशें जोगए। थालें, डाती वहि पंयमी रविवारे, जे थोवीश योङ यतुरधारे ॥ लुनाआ गुरु रत्नविनय पंडित राया, जुधशिष्य विवेड वि वेड विनय लाया, तस शिष्यश्नभृतें गुएागाथा-प्र४ छति श्रीनेभिरान्नुस संवाहे अष्ट स्त्रीवएनि संसाधन उवि अमृतविनयगारी विश्यिते योनीश योङ संपूर्णम् ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainbrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90