Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( १८ ) एप्रलुगाशा नछहासीवधावेछ, उरने डीनृपने प्रेमवेछे, तुमपुत्रथयोसुर सेवेगे| एप्रलुगा सुपी समुरविनय नृपहरज्याछे, प्रलु पूरणनलते परज्याछ, उहे। अमृत मेहुसावरण्याचे प्रमुगाच्या २. योङबीब्ने एनृपसमुरविबय, पुत्र जन्म्याउछ महोत्सव भंडावेएनीशान - ने, शहिवस माहें सूनऊरउरीशंडे एगे खांडएएछवानित्र तालवनवेछे, छ गेहनी भंग गावेछे,उर्छ मोतीयां सेंतीवन धावेछ। नृपाश विसें शोठएडी पाछे, हुनीयाने मोनन घांछे, त्रिहुं लोड़ नागरन सीघाछेगनृपाशा प्रलुटिन हिन मोहोय थायेछे,प्रलु मेवा भोजाये। छे, प्रलुम्ममा पगथायछे। नृपना उपप्रलुभाष अवस्था जेषेछ,प्रलुपातो
-
Jain Edultiona International
For Personal and Private Use Only
www.jaimelibrary.org

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90