Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ८१ )
वली वंश वधारणा छे नारी, उही रत्न जाए। नगमां सारी, बिणे तुम सरिजा ननम्यालारी होताना शा धरणी विना घर सूत्र डोए जोसे, ते सांढ परे झिरतो डोसे, वली सोङमां वाढो उड़ी जोसे || हो जाणा ॥ उरन्नती पडी मावर्धराणी, उहेग्म रह्याशुं हठताएणी, तु मे अमृत मननी सहु लगी हो सानामा १७. हे ससनेही, से तुमने नथी गमतुं भ हारा वासा• ॥ मनमेसी, बात उहुं शिवा हेवीना सासा ॥ खांडणी ।। भि वीनवे छेजी लढीं गोपी, शुं जासउ थाखो उहे झेपी, तुमे पेहरो जंगसोने टोपी ॥ ससना शासुएसी यिंते भसीयुं भेटाणे, स्त्री जातड़ शहहुठ नवी छांडे, डुए। जीत्तर साभारते भांडे ॥ हेसस शाभि यिंति प्रभुभुज विसजायु, ते हेजी सहु गोपी यछु, उहे मान्युमान्युजमे लएयुं
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