Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ ( ७६ ) र परएगी, अनुडो महीपतीनो घरणी, ते सा थे भाएगे छे घरणी । उड़ेगा। तोशुं तमे जे ङथडी लग्जो, पण बावीशमां निन उहे वाखो। उहे अमृत तिम मुहगा थाखो॥उहेगार १०. ॥लणे सत्यलामा, लारी थर्धशुं जेठा नेम नगीना ।। छो जावीशमां, नहुडुसना माघारडे शिवाहेवीना ॥ जे खांडणी ॥ तुमे सांलसो बात उहुँ डावी, जागभमां निनमुजथी यावी, ने खान सगें यासी खावी॥ालऐणाशा निएणे सघसी सृष्टी नीपाछे, तेएवरणावरण थपाईछे, नेऐऐ युगला नीति जपार्धछे ।। लोगा शातेऋषल प्रलु प्रलुता पार्छ, जे उन्याने परार्ध, सो जेटराने जेटी जे खाई।। लोगा । ते ङिम शिव भंहिर नई बसिया, तुभे ढीठया अर्ध नवारसीया, शिव वश्वा अमृतपरसीया ॥ लगाम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainglibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90