Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ । ( १ ) जलस्में सोरत,पंडित पूछत गर्छ उरोप पशालभर उहे मोयएघहेरेऊ, विरहे | ती नारीतगतसरक्षायें विरहेसमशुय मथु, नहिं भनेभए पसाउहे ज्वीता शाभसतासमननु, पीसी पुठठिशुंजीपीए प्रेमीयोट वशीभोयजसी, तासगीपर || हसही धीधी पाना उरियित्तमने पर न्या ट, मटके नविझटके रागे एप्रीतीरीतिमा नोपभ नाट, उरना प्रेम धन भारायण उहे मुनिहेली सुलो मरजेती, नाटनवि उरतां मावे॥श्रीशुलवीर वलर पसायें। लवनाटसुगन्ने लावें. पप | गमशोबभी। ऐशी भोरसीनी छे। एभेघरागीर लेवउरीमोरे,ध्यनी वेदा भालवडोशीमरापहोरसमें मध्यान नेहीडोलाहीपरेरापाछपे पहोरे श्री । - Jain Educhlona International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90