Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ४ ) नारीमा पोहताशुणिजननें भी एक संबाव्यगावगाणगा ब्नतिसमरपनाएं नारसी नगरे, पूरव लव रिसुजनीवार तापशविध वेन छेदन लेख्न पामीरे,मा थुनेपाली तीर्थयेहता भाताने पुत्र विवेश नधारता पटासंगाव्यगावगामगाश्री शुलवीर गुनांवयए.रसालारे,साललत वेश्या पित्तोपशाभीयुपत्रपउराशुगं ही.लेह उतीरे, मिथ्यात मनाहिडेवामी, युपश्याथें सूधैं समति पाभीयुगलास व्यगाकामा । पाढाल सत्तरभीषणसखूणां नाथमो, रेघेरभावोने एमे देशी मिथ्यानवामीनेगे श्या समङित पामीरे,हर्षथयो अतिरेउ। वाधार पारसप्लोह विवेशवाहावयन उऐसाछेडावागामाश्रवते संवरथयोरे,
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