Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ४८ ) पशाभरि हसीने साहाभुसावे,वागा सायुंडे सोहएंगे। मापशुने घरगंगामान वी, सुजनुनहीं अंडाणुंपणातायात घडीनी मवध उरीने, वागायाख्यां यितुडुंयो रीराभनथी भुनने वीसारी मेहेली, ओए भनावे गोरी रेप घगाया मरें मावी || अलाछो, वागाभरि पावन डीने रैपहासी तुमारी मरब्बउरेछे, मुनरो मानी पीळेरे। पशा पाणड हायतुं नसशीरहीने,वा एमनमाने तेमउरळेरे एघपभप माइसने घमारे, डीनी परें रहेरेपनाह भि परीने रह्या योभाशुं वागाणध्यरतन म मारे एनित्यानित्यमाहारी वंधना होन्ने, बे मन दृढ उरी राजेगा घाणा
पोशपथूखिलउहे सुरासुंधरी, | वशीघा नयरातुं व्याकुल थर्ण वि
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