Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ५२ )
गतुमारो ब्न्नएयोरे, मेहेलोने जांयेरे शाभने जटडे असन्न मांहे, प्रेमनो अंटोरे ॥ रखे खांड एसी । योगी होय ते बंगल सेवे, तो रहे योग नुं पाणी रे ॥ रसम घर जावी योग ब्लसवसो, योगनी भुहा में ब्लगी रे ॥ मेहेसोने आशा हम उठे मऊ पाय विछुया उमडे, रमनभ घूघरा बाबेरे ॥ नरना नमारा मांहे, व्रत तमारं लांबेरे ॥ मेगाशा खेड योभासुं जने त्रिशा सी, त्रीन्ने भेहुलो रज रज यूखेरे ॥ खजडीनां डीसाला मांहे, मुनिपए। साभुं ब्लूग्ने रेशा भेगा उ । घपभप माहसने धौंडारे, वाणाथै थे नाट उछहेंरे । भुजडाना भरउखडा मांहे, उहोङोए। न पडे इहेरे ॥ मेनामा जेहवा वयण सुणी ओश्यानावाना धूमिल र उहे सुख जालारोप नानानाहवे हुं नवि पूडुं, हेजी ताहारायासारे ॥भेणाचा अध्यश्तन उहे ते मुनिव
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