Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 48
________________ - ( ४७ ) उछोटो हट उरी, हवे थूसिल मुर्णि ओश्या भंटिर दूजा, माव्या मनाएं उ तव एसी शतावसी, धघवघाई ओश एवालम माव्यो विरहगी, मपरीस भन अंधेस एनवीही सासुधरी,पीने भसवा अन्न यातुङनिमयतुरा हु, ते गली उरी खान । परासुपो स्वाभी मुन्न लगी, छटी हीघो छेह प्यार घडी भुनने उही, पीली अवरांडीघ स्नेह एहस तपो भतापगो, बेहचो सध्यावान राडा र तपोवेहो बिशो, तिभनागर भित्रनोमान.। मेहगाहेती भाननी, मघुशंजोदेवेए । मान सश्मघर मांगो, मान सईसहिन श्यएएटा भोतीयथाल व घावीने, अश्या उरे मरघास. पूरव प्रीत संसारीथे, उरीथे सीस विनासा लामोहो। - - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainprary.org

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