Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 45
________________ ( ४४ ) या तएगी, सेर्घ अनुभति सार ॥ शु३पासें मावी उरी, सीधुं संयम ला॥१नाइज व्याशब्लउने, नेर्घ सहु विस्मय थाया। यूसिल ने शन्नङहे, खाते शुं उद्देवाय परणा तव यूसिल-ट उहे सुखो, सोडे उही बे वात ।। नंदराय भारी झरी, सिरियो बेशसे पार ।।२१।। ते खवहात सुणी तमे, शेष लराणा राय । भुन पिताने भखं पड्युं, डी घो खेह डीपाय ॥ २२ ॥ रान्न मित्र नओ नो, जोसे हम संसार ॥खासोयीमें खे लसो, सीधो संयम लार ॥ २३ ॥ भि उहीने यूसिल हल, माव्या गुश्ने पास। सिरि याने सहयें भली, डीघो मंत्री मासाश्४॥ हवे अभिनी डोश्या तिहां, ब्लेवे वालिभ वाटया धूमिल सजी खाव्या नहीं, सूनी हिंडोला पार॥श्पा रे सजी बीड बीताव For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainerbrary.org

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