Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( २४ ) घरी प्रगटावेरे, तिहां ताहजनशवेरे पथा नवोटवयें मेगामरे, नित्यरहिये छैयें तिगडामरेपस्वामीजसीया शिर तान्न रि, शुलवीर प्रलुन्छ रानरे ॥ १२॥ ति । ___ पटाख तेश्भीमावोहरि वासरीया वाला एघशी रामेश्याउहेसुएन्ने सुभने, माशें नीराश उश्यां नभने, प्रीतमल नघटे तुभने पारसीदासाथें जरभशु,डीसीपन लातें सघनशु, नित्य नमाडी पछे तमशु परसीमा नांडपी एमेहसगाई नवी उरवी, पीनघटे भतीने घरवी,पूखनारी परिहरवी परसाशाजार वरस सुनसान लरतां, सालेहछडाभां असतां, खाजेशांसु डांजरतां परगाभास भाषाजनेऊ खे, वधधी तर वेसीवसे,वस्सल विरहें। हमसेपरगागा श्रावएीयो सीये धरती,
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