Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( 23 )
डी यार तणी यांहरणीरे, पछी घोर अंधारीरयणीरे ॥ ॥संसार स्वरूपने हेजीरे, में मेसी तुलने डीवेजीरे॥ओर्घ वायुने तान्लुवे तोसेरे, पवने उनायल डोसेरे ॥धारविया यारने यूडेरे, जसधि भर्याा भूडेरे ॥जलोङ माहे होय लवरे, पण हुतुल हाथ नखावु रेणा पूरखें रभीया रंग रोसेरे, खान्न तु पग भोलडी तोसेरे । पहेलां तो अंहीं नहीं हूं रे, हुवे संतम साभ्युं छे मीहुरे शाला मायजा पने में परि हुरियारे, भात तात नवा भेंडरी यांरे । तल जांधव डेरी सगार्धरे, में डीघा नवा घ्श लारेला होय नाभे छे यित्रशासीरे, परएणी धरणी सटासीरे ॥ विष तेल हीपऊ जन्तु खातेरे, पारशय्या ते नित्य ढाले रे ॥१णा नित्य खमृत लोनन नभीयें रे, रसरंग भरे घेर श्मीयेंरे । शुमि धूप
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